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________________ त्रैवर्णिकाचार | आचमन । सन्नालपात्र सम्पूर्ण पूतशीतलवारिणा । तद्वभवेद्य दत्तेन कुर्यादाचमनं ततः ॥ ८९ ॥ इसके बाद वर उत्तम भृंगार ( झारी ) में भरे हुए तथा पहलेकी तरह आदरपूर्वक दिये हुए पवित्र और शीतल जलसे आचमन करे || ८९ ॥ कांस्यतालास्थितं त्यक्तकांस्यपात्रपिधानकम् । प्राशयेन्मधुपर्कार्यं दधि तद्वत्समंत्रकम् ॥ ९० ॥ ४१ अनन्तर ऊपरका ढक्कन हटाकर, काँसेके वर्तनमें रक्खा हुआ दही और शक्कर, मधुपर्ककै लिए, मंत्रपूर्वक, आचमनकी तरह, वरको प्राशन करावे । वह मंत्र यह है: ॥ ९० ॥ मंत्र — ॐ ह्रीं भगवतो महापुरुषस्य पुरुषवरपुण्डरीकम्य परमेण तेजसा व्याप्तलोकस्य लोकोत्तरमङ्गलस्य मङ्गलस्वरूपस्य संस्कृत्य पादावर्थेनाभिजनेनातुकृत्याय उदवसितचत्वरेऽभ्यागतायाभियोगवयोमधुपर्काय समदत्तिसमन्वितायाघ्यस्य पाद्यस्य विधिमाप्ताय दध्यमृतं विश्राण्यते जामात्र अमुष्मै ॐ । इति मन्त्रयेत् । इस मंत्र को पढ़कर दही और शक्करको मंत्रित करे । मंत्र — ॐ नमोऽर्हते भगवते मुख्यमंगलाय प्राप्तामृताय कुमारं दध्यमृतं माशयामि झं वं ह्नः अ सि आ उ सा स्वाहा । इति मधुपकमन्त्रः । त्रिः प्राशयेत् । यह मंत्र पढ़कर तीन वार दही और शक्कर प्राशन करावे । वरको वस्त्रालंकार दान | ३२१ मालाभरणवस्त्राद्यैरलङ्कृत्य वरं ततः । कन्या भ्रात्रे प्रदद्यात्तद्वत्रं तेन धृतं पुरा ॥ ९१ ॥ इस विधिके हो चुकने बाद कन्याका पिता माला, आभूषण, वस्त्र आदिसे वरको अलंकृत करे । वर जो कपड़े पहले पहने रहता है उन्हें उतारकर कन्याके भाईको दे दे ।। ९१ ॥ कन्याको वस्त्रालंकार दान | वरानीतैस्तु सद्वस्त्रैर्भूषणैश्च खगादिभिः । स्नातामभोजनां कन्यां पित। ऽलङ्कारयेत्ततः ।। ९२ ॥ अनन्तर जो स्नानकर चुकी हो और भोजन न किया हो ऐसी उस कन्या को उसका पिता, वरकी ओरसे लाये हुए वस्त्रों, आभूषणों और मालाओंसे अच्छी तरह अलंकृत करे ।। ९२ ।। यज्ञोपवीत ग्रहण | पुनराचमनं कृत्वा ताम्बूलाक्षतचन्दनैः । यज्ञोपवीतवस्त्राणि स्वीकुर्याच्च वरोत्तमः ॥ ९३ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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