SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 349
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सोमसेनभट्टारकविरचितग्यारहवाँ अध्याय । वन्दे त्वां जिनवर्द्धमानमनघं धर्मद्रुसद्धीजकं... कर्मारातितमोदिवाकरसमं नानामुणालंकृतम् ।। स्याद्वादोदयपर्वताश्रिततरं सामन्तभद्रं वचः पायानः शिवकाटिराजमाहितं न्यायकपात्रं सदा ॥१॥ धर्म-वृक्षके बीजभूत, कर्म-शत्रुरूप अगाढ़ अन्धकारको नाश करनेके लिए सूर्यके समान, अनेक गुणों से अलंकृत और अघाति-मलरहित. श्रीवर्धमान परमात्माको मैं नमस्कार करता हूँ। तथा जो स्याद्वादरूपी उदयाचलपर आरूढ, शिवकोटि महाराजके द्वारा पूज्यपनेको प्राप्त हुए और न्यायका एक अद्भुत पात्र श्रीसमन्तभद्रके वचन सदा हमारी रक्षा करें ॥ १ ॥ जिनसेनमुनि नत्वा वैवाहविधिमुत्सवम् । वक्ष्ये पुराणमार्गेण लौकिकाचारसिद्धये ॥ २॥ मैं श्रीजिनसेनस्वामीको नमस्कार कर, लौकिक आचरणकी प्राप्तिके लिए, पुराणके अनुसार विवाहविधि नामके महोत्सवका कथन करता हूं ॥ २ ॥ विवाह करनेके योग्य कन्या। अन्यगोत्रभवां कन्यामनातङ्क सुलक्षणाम् ।। आयुष्मती गुणाढ्यां च पितृदत्तां वरेद्वरः ॥ ३॥ - जो अन्य गोत्रकी हो-अपने गोत्रकी न हो, किन्तु सजाति हो; रोगरहित हो,उत्तम लक्षणोंवाली हो, दीर्घ आयुवाली हो, विद्या, शील आदि गुणोंसे भरी-पूरी हो और अपने पिताद्वारा दी हुई हो, ऐसी कन्याके साथ 'वर' विवाह करे ॥ ३ ॥ - वरका लक्षण । वरोऽपि गुणवान् श्रेष्ठो दीर्घायुर्व्याधिवर्जितः।। सुकुली तु सदाचारो गृह्यतेऽसौ सुरूपकः ॥४॥ ___ वर भी गुणवान्, श्रेष्ठ, दीर्घ आयुवाला, नीरोग, उत्तम कुलका, सदाचारी और रूपवान होना चाहिए ॥ ४ ॥ वरके गुण । सत्यं शौचं क्षमा त्यागः प्रज्ञौजः करुणा दमः। प्रशमा विनयश्चात गुणाः सत्त्वानुषङ्गिणः ॥ ५॥ सत्य, शौच (निर्लोभता), क्षमा, त्याग, विद्वत्ता, तेज, दयालुता, इंद्रिय-निग्रह, प्रथम और विनय, ये प्राणियोंमें रहनेवाले गुण हैं। इनका भी वरमें होना आवश्यकीय है ॥५॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy