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________________ त्रैवर्णिकाचार। _____ जो मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदना, इन नौ अंगोंके द्वारा दिनमें मैथुन नहीं करता है वह छठी प्रतिमाधारी श्रावक है ।। १२६ ।। ब्रह्मचर्य प्रतिमाका स्वरूप । पुव्वत्तणवविहाणं पि मेहुणं सव्वदा विवज्जंतो। इच्छकहादिणिवत्ती सत्तमं बह्मचारी सो ॥ १२७ ॥ जो ऊपर कहे हुए नौ प्रकारसे दिन और रात दोनों समयोंमें भैथुन नहीं करता है, तथा स्त्री-कथा आदिका त्यागी है, वह पूर्ण ब्रह्मचारी ब्रह्मचर्य प्रतिमाधारी सातवां श्रावक है ।। १२७ ।। ब्रह्मचारीके भेद। उपनयावलम्बी चादीक्षिता गूढनैष्ठिकाः।। श्रावकाध्ययने प्रोक्ताः पंचधा ब्रह्मचारिणः ॥ १२८ ॥ उपनय ब्रह्मचारी, अवलंब ब्रह्मचारी, अदीक्षित ब्रह्मचारी, गूढ ब्रह्मचारी आर नैष्ठिक ब्रह्मचारी, ऐसे पांच प्रकारके ब्रह्मचारी होते हैं, जो श्रावकाचार पढ़ने के योग्य कहे गए हैं ।। १२८ ॥ ब्रह्मचारी गृही वानप्रस्थो भिक्षुश्च सप्तमे। चत्वारो ये क्रियाभेदादुक्ता वर्णवदाश्रमाः ॥ १२९ ॥ -- जैसे उपासकाध्ययन नामके सातवें अंगमें क्रियाभेदसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, ये चार जुदे जुदे वर्ण कहे गए हैं, वैसे ही उसी अंगमें क्रियाभेदसे ब्रह्मचारी, गृही, वानप्रस्थ और भिक्षु, ये चार आश्रम कहे गए हैं ।। १२९ ॥ उपनयन ब्रह्मचारीका लक्षण । श्रावकाचारसूत्राणां विचाराभ्यासतत्परः। गृहस्थधर्मशक्तश्वोपनयब्रह्मचारिकः ॥ १३० ॥ जो प्रथम श्रावकाचारके सूत्रोंके विचारने और अभ्यास करनेमें तत्पर रहता है और पश्चात् गृहस्थ-धर्म में प्रविष्ट होता है, वह उपनयन ब्रह्मचारी है। भावार्थ-जो यज्ञोपवीत संस्कारसे संस्कृत होकर गुरुके पास उपासकाध्ययन शास्त्र पढ़ता है और विद्या-समाप्ति-पर्यन्त परिपूर्ण ब्रह्मचारी रहता है-विद्या समाप्त हो जाने के बाद गृहस्थ-धर्मको स्वीकार करता है-विवाहादि कार्य करता है, वह उपनयन ब्रह्मचारी है।। १३० ॥ अवलंबब्रह्मचारीका स्वरूप । स्थित्वा क्षुल्लकरूपेण कृत्वाऽऽभ्यासं सदाऽऽगमे । कुर्याद्विवाहकं सोऽत्रावलम्बब्रह्मचारिकः ॥ १३१ ॥ जो क्षुल्लकका वेष धारणकर आगमका अभ्यास करनेके बाद विवाह करता है वह अवलंब ब्रह्मचारी है ॥३१॥ __ अदीक्षाब्रह्मचारीका लक्षण । विना दीक्षा व्रतासक्तः शास्त्राध्ययनतत्परः । पठित्वोद्वाहं यः कुर्यात्सोऽदीक्षाब्रह्मचारिकः ॥ १३२ ।।
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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