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________________ (४) शुद्धाशुद्धि। शुद्धियां। तदृष्ट्वा । गणधर पृष्ठ सं० पंक्ति सं० अशुद्धियां। अादियां। तदृष्ट्वा गणघर मोक्षमुख जो बकरेके समान अतिशय कामी हैं वे बकरेके जैसे हैं। मोक्षसुख जैसे बकरा अतिशय कामी होता है वैसेही जो शास्त्र सुननेमें अतिशय कामी हों वे बकरे जैसे हैं। ये चारों माननेसे यह माननसे ओ सँवार शैय्या शय्या गर्मा गर्मी कोटनवाला काटनेवाला शुद्ध राग वर्णश्च वर्णैश्च चांद जैसा चन्द्रकान्तमणि जैसा सैवार गुरूपदश गुरूपदेश अग्नि, सूरज, चांद, दीपक, अग्नि, सूरज, चाँद, गौ, सर्प, सूर्य, पानी और योगीश्वर- दीपक, संध्या, पानी और योगीइनको देखता हुआ श्वर-इनको देखता हुआ; तथा गर्दनके सहारेसे पीठ पीछे .. पीठकी तरफसे गलेमें पेशाबके समय अथवा पेशाबके समय सामायिक करते समय सामायिक, पूजा, जप आदि क्रियाएं करते समय . फल वगैरहसे फल और कोयलेसे शौच करे शौच करे एवं तीन बार शौच करे और तीन ही बार हाथ धोवे । कमरतक स्नान करके पैरोंको अवशिष्ट मिट्टीसे पैर धोकर कमरखूब अच्छी तरहसे घोवे ... तक स्नान करे गोलीसे भागसे ३२ २६ ३३ २७ २५
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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