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सोमसेनभट्टारकविरचिते
विधाय वक्षसि बालं महावाद्यसमन्वितम् । निष्क्रमेद्वन्धुभिः साकं माता पिताऽथवा गृहात् ॥ १२८ ॥ भक्त्या चैत्यालयं गत्वा त्रिः परीत्य प्रपूज्यच । .. शिशोः सन्दशेयेत्सीत्या वृद्धये जिनभास्करम् ॥ १२९ ॥ संघ सम्पूज्य सद्वस्त्रैः शेषाँस्ताम्बूलचन्दनैः।
शेषाशिषं समादाय पूर्ववच बजेद्गृहम् ॥ १३० ॥ चौके महीने बालकको जिन-भास्करका दर्शन करानेको घरसे बाहर निकाले । त्रीसरे या · पहिले महीने भी निकाल सकते हैं । यह विधि इस तरह करे कि, शुक्लपक्षमें अच्छे ग्रह नक्षत्र आदि ..देखकर उस दिन बालकको स्नान करावे और वस्त्र. आभूषण पहनाकर पुण्याहवचनोंद्वारा कुश
और. जलसे बालकका अभिषेचन करे । बाद लड़केकी मा अथवा पिता उसे गोदमें लेकर बहुत गाजे-बाजेके साथ अपने भाईबन्धुओं सहित घरसे बाहर निकले। भक्तिभावसे चैत्यालयको जाकर जिन भगवान्की तीन प्रदक्षिणा देकर उनकी पूजा करे और बालकको उसकी वृद्धि के लिये जिन. सूर्यका दर्शन करावे । फिर अपने कुटुंबियोंको वस्त्र आभूषण पहनावे, अन्य जातीय लोगोंका तांबूल चंदन आदिसे सत्कार करे तथा आसिका लेकर जिस तरह चैत्यालयको आये थे उसी तरह घरको वापिस जावें ॥ १२६-१३० ॥
मंत्र-ॐनमोऽर्हते भगवते जिनभास्कराय तव मुखं बालकं दर्शयामि दीर्घायुष्यं कुरु कुरु स्वाहा । ... यह मंत्र पढ़कर बालकको जिन भगवानका दर्शन करावे ।
__ उपवेशन-क्रिया। पञ्चमे मासि कर्तव्यं शिशोश्चैवोपवेशनम् । सम्पूज्य श्रीजिनं भूमिं कुमारान् पञ्च पूजयेत् ॥ १३१ ॥ बीहिश्यामाकगोधूममाषमुद्गतिला यवाः। एभिः संलेख्य रङ्गावली च वस्त्रं प्रसारयेत् ॥ १३२ ॥ स्नापयित्वा शिशुं सम्यक् भूषणैश्च विभूषयेत् । गृहे पद्मासनस्थाने सुमुहूर्ते निवेशयेत् ॥ १३३ ॥ पूर्वमुखे विधायास्यमधास्थं वामपादकम् । उपरि दक्षिणाधिः स्यादुपर्यस्य करद्वयम् ।। १३४॥ नीराजनं ततः कुर्याद्विमैराशीर्वचः परम् ।
तदिने सज्जनान् सर्वान् भोजयेत्पीतिपूर्वकम् ॥ १३५ ।। बालकके जन्मके पांचवें महीनेमें उपवेशन ( बालकको बिठलानेकी क्रिया) करनी चाहिये । यह इस तरह कि, अपने घरमें श्रीजिनदेव, बालकके बैठानेकी भूमि और पांच कुमारोंकी यथायोग्य पूजा करे । चांवल, गेहूं, उड़द, मूंग, तिल और जौ की एक रंगावली खींचकर उसपर एक कपड़ा