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सोमसेनभट्टारकविरचितशुचिभिः सलिलैः स्नातो धौतवस्त्रसमन्वितः । स्वभायर्यायां क्रियाः कुर्यादाचार्योक्तित आदरात ॥ ६४ ॥ जिनपूजां च होमं च गृहे कुर्यात्स पूर्ववत् । आचायः कुलवृद्धाभिः स्त्रीभः सह सुमार्गगः॥६५॥ संस्नाप्य गर्भिणी तां तु भूषयेद्वस्त्रभूषणैः ।.. उपलेपादिकं कुर्याचन्दनादिसुवस्तुभिः ॥६६॥ काष्ठपीठे जिनाग्रे तु रक्तवस्त्रपच्छादिते । सिन्दूराजनसंयुक्तां गर्भिणी तां निवेशयेत् ॥ ६७ ॥ पुण्याहवाचनैः सूरिः सन्मन्त्रेस्तां प्रसिञ्चयेत् । पुरुषेण करे तस्याः पूगीपत्राणि दीयन्ते ॥ ६८॥ यवाङ्कुरैस्तथा पुष्पैः पल्लवैर्दर्भसंयुतैः। मालां कृत्वा तु कण्ठेऽस्या अपेयेद्विधिपूर्वकम् ॥ ६९ ॥ यक्षादीनां तु पूर्णा दत्वा शान्ति पठेद्बुधः ।
ताम्बूलादिफलैवस्वेर्विवादीस्तोषयेद्गुरुः ॥ ७० ॥ अपना भला चाहनेवाला पुरुष पांचवें महीनेमें गर्भकी पुष्टि के लिए पुंसवन नामकी क्रिया करे । पवित्र प्रासुक जलसे स्नान कर धुले हुए साफ-सुथरे कपड़े पहनकर गृहस्थाचार्यके कहे अनुसार पति - स्वयं अपनी भार्या में सादर पुंसवन क्रिया करे । पहलेकी तरह अपने घरपर जिनपूजा होम आदि करे । सुमार्गगामी गृहस्थाचार्य कुलकी स्त्रियों द्वारा उस गर्भिणीको स्नान कराकर वस्त्र-आभूषणोंसे सुसजित करे । उसके चन्दन केशर आदिका लेप करे । ललाटमें तिलक लगाये हुई, आंखोंमें काजल आंजे हुई उस गर्भिणीको जिन भगवानके सामने लाल कपड़ेसे ढके हुए लकड़ीके पटा पर बैठावे । गृहस्थाचार्य पुण्याहवचनों द्वारा मंत्रोच्चारण पूर्वक उसका अभिषेक करे, और उसके पति द्वारा उसके हाथोंमें तिल और पा दिलावे । जवके अंकुर, पुष्प, कोमल पत्ते और डाभकी माला बनाकर उसके पतिके हाथसे उसके गलेमें विधिपूर्वक पहनबाबे । बाद गृहस्थाचार्य यक्ष यक्षी आदिको पूर्णाहुति देकर शांन्तिपाठ पढे । घर-मालिक उस समय वहां उपस्थित ब्राह्मणोंको ताम्बूल, फल, वस्त्र आदि देकरके खुश करे || ६३-७० ॥
मंत्र-ॐ झं बं इवीं वीं हं सः कान्तागले यबमाला क्षिपामि झझै स्वाहा । __ यह मंत्र पढ़कर पति स्त्रीके गले में माला डाले।
मंत्र-ॐ झं वं व्हः पः हः असि आ उ सा कान्तापुरतः पायस दध्योदनहरिद्राम्बुकलशान् स्थापयामि स्वाहा । __अनेन तस्या अग्रे पायसदध्यादनहरिद्राम्बुकलशान स्थाप्य बालिकाकरण स्पर्शयेत । तत्र पायसस्पर्शे पुत्रलाभः । दध्योदनस्पर्शे पुत्रीलाभः । हरिद्राम्बुकलशस्पर्श उभयोरलाभः।।