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________________ अपने पुत्र, पौत्र, पुत्री आदिको. लौकिक आचार-व्यबहारकी शिक्षा देके । अपनी शक्तिके अनुसार उनके विवाह-शादी करे । तथा गौ, घोड़ा, भैंस आदिको अपने अपने स्थान पर बांधे और सन्ध्याके समय पहलेकी तरह वह ब्राह्मण सन्ध्या-वंदना. करे ॥ ४२--४३॥ क्षत्रियाणां विधि प्रोचे संक्षेपाच्छूयतां त्वहम् । भृत्यो यः क्षत्रियस्तेन गन्तव्यं राजसअनि ॥४४॥ सभास्थितं महीपालं नत्वाऽग्रे स्थीयते भुवि । सशस्त्रः स्वामिभक्तः सन्करकुड्मलवान्मुदा ॥ ४५ ॥ नृपाज्ञया यथास्थानं तथैवोपविशेत्सुखम् । स्वाम्यर्थं च त्यजेत्त्राणान स्वाम्यर्थ देहधारणम् ॥ ४६ ॥ एतत्कार्य प्रकर्तव्यं तच्छुत्याः शीघ्रतः पुनः ।। तत्कर्तव्यं प्रयत्नेन प्रसन्नः स्याद्यतो नृपः॥४७॥ स्वामिद्रोही कृतघ्नश्च यश्च विश्वासघातकः । पशुधाती कृपाहीनः श्वनं याति सः निन्दकः॥४८॥ नृपाज्ञा यत्र विद्येत स गच्छेसत्र वेगतः। सन्ध्यां सामायिकं पात्रदान तपश्च साधयेत् ॥ ४९॥ ___ अब थोड़ासा क्षत्रियोंका कर्तव्य बताया जाता है। उसे ध्यान देकर सुनिए । जो क्षत्रिय नौकर हो वह प्रातः उठकर अस्त्र-शस्त्रसे सुसज्जित हो राजभवनको जावे । वहाँ जाकर सभामें बैठे हुए राजाको नमस्कार कर दोनों हाथ जोड़ हृदयमें स्वामीकी भक्ति रखता हुआ बड़े हर्षसे उसके सामने भूमिपर खड़ा रहे । फिर राजाकी आज्ञासे अपने योग्य स्थानमें जाकर सुखसे बैठ जावे । मौका आने पर स्वामीके लिए अपने प्राणोंकी आहूति कर दे; क्योंकि सेवकोंका देह धारण करना स्वामीके लिए ही है । राजा कहे कि यह कार्य करो उसे बहुत जल्दी और पूरी कोशिशके साथ करे, जिससे अपना स्वामी अपनेसे प्रसन्न रहे। जो भृत्य स्वामीका द्रोही, कृतघ्नी, विश्वासघाती, पशुधाती, निर्दयी और निन्दा करनेवाला होता है वह मरकर नरकको जाता है । राजाकी जहां भेजनेकी आज्ञा हो वहाँ शीघ्र जावो सन्ध्यावंदन, सामायिक, पात्र-दान, तपश्चरण आदि कर्तव्योंकी साधना करता रहे ॥ ४४-४९ ॥ देवपूजां परां कृत्वा पूर्वोक्तविधिना नृपः । आगत्योपविशेत्स्वस्थः सभायां सिंहविष्टरे ॥ ५० ॥ न्यायमार्गेण सश्चि सुदृष्ट्या प्रतिपालयेत । प्रजा धर्मसमासक्ता बिना प्रजां कुतो वृषः ॥५१॥ दुष्टानां निग्रहं कुर्याच्छिष्टानां प्रतिपालनम्। .. जिनेन्द्राणां मुनीन्द्राणां नमनादिक्रियां भजेत् ॥ ५२ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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