SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रैवर्णिकाचार। २०९ त्रुटितं पाटितं जीर्ण हुच्छे सूक्ष्म सरन्ध्रकम् । न ग्राह्यं गालनं स्त्रीमिर्जलजन्तुविशुद्धये ॥१३॥ जो कटा-फटा हो, पुराना हो, छोटा हो, बारीक हो, छेदवाला हो-ऐसा कपड़ा स्त्रियोंको जल छाननेके लिए नहीं रखना चाहिए ॥ १३ ॥ तेन वस्त्रेण कुम्भास्यं संच्छाद्य शोधयेज्जलम् । शनैः शनैश्च धाराभिर्यथा नोल्लंघयेद्धटम् ॥१४॥ ऐसे योग्य छन्नेसे घड़ेके मुखको ढांक कर धीरे धीरे धार बांध कर जल छाने, ताकि जल उछलकर घड़ेके बाहर न फैले ॥ १४ ॥ शेषं जलं तु तत्रैव तीर्थे निक्षेपयेत्पुनः । तीर्थादागत्य गेहे तु पुनः संशोधयेज्जलम् ॥ १५ ॥ बचे हुए जलको अर्थात् जीवानीको वहीं जलाशयमें छोड़ दे । तथा जलाशयसे घर आकर फिर जल छाने ॥ १५॥ घटीद्वये गते चापि पुनरेवं विशोधयेत । प्रातःकाले तु संशोध्य शेषं पूर्वमले क्षिपेत् ॥ १६ ॥ मुहूर्त गालितं तोयं प्रासुकं प्रहरद्वयम् । ... उष्णोदकमहोरात्रमगालितमिवोच्यते ॥ १७ ॥ इसी तरह प्रत्येक दो घड़ीके बाद जल छान कर काममें लेवे । सुबहके समय जल छानकर जीवानी उसी जलाशयमें डाल आवे । इस तरह छाना हुआ जल दो घड़ी तक जीव-जन्तु रहित याने प्रासुक रहता है । इलायची, लौंग वगैरह डालकर प्रासुक किया हुआ जल दो पहरतक और गर्म किया हुआ जल एक दिनराततक जीवजन्तु-रहित रहता है । इसके अलावा जो जल है वह बिना छने जलके बराबर होता है ॥ १६-१७॥ वासयेत्पाटलीपुष्पैर्मूलेरौशीरकैस्तथा । एलाकर्पूरकाभ्यां तु चन्दनादिसुवस्तुना ॥ १८ ॥ पाटली (पाढल ) के फूल, उशीरक मूल (खस ), इलायची, कपूर तथा चन्दन आदि उत्तम उत्तम वस्तुओंसे जलको सुगन्धित करे ॥ १८॥ - एकविन्दूद्भवा जीवाः पारावतसमा यदि । भूत्वा चरन्ति चेज्जम्बूद्वीपोऽपि पूर्यते च तैः ॥ १९ ॥ जलकी एक बूंदमें इतने जीव हैं कि यदि वे कबूतरके बराबर होकर उड़ें तो उनसे यह जम्बूद्वीप लबालब भर जाय ॥ १९ ॥ २७
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy