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________________ त्रैवर्णिकाचार । तृषितस्तु न भुञ्जीत क्षुधितो न पिबेज्जलम् । तृषितस्तु भवेद्गुल्मी क्षुधितस्तु जलोदरी ॥ १८४॥ प्यासा तो भोजन न करे और भूखा जल न पीवे । क्योंकि प्यासमें भोजन करनेसे गुल्मरोग हो जाता है और भूखमें पानी पीनेसे जलोदर रोग हो जाता है ॥ १८४॥ आदौ स्वादु स्निग्धं गुरु मध्ये लवणमाम्लमुपसेव्यम् । रूक्षं द्रवं च पश्चान्नं च भुक्त्वा भक्षयेत्किचित् ॥ १८५॥ - भोजन के लिए जब बैठे तब शुरूमें मीठा और चिकना भोजन करे, बीचमें भारी, नमकीन और खट्टा भोजन करे, तथा अन्तमें रूखा और पतला भोजन करे । भोजन कर चुकनेके बाद कुछ न खावे ॥ १८५ ॥ भोजनान्तराय। प्राणघातेऽनबाष्पेण वन्हौ झंपत्पतङ्गके। . दर्शने प्राणघातस्य शरीरिणां परस्परम् ॥ १८६ ॥ कपर्दकेशचर्मास्थिमृतप्राणिकलेवरे। नखगोमयभस्मादिमिश्रिताने च दर्शिते ।। १८७ ॥ उपद्रुते बिडालाद्यैः प्राणिनां दुर्वच श्रुतौ । शुनां श्रुते कलिध्वानै ग्रामघृष्टिध्वनौ श्रुते ॥ १८८ ॥ पीडारोदननिःश्वानग्रामदाहशिरश्च्छिदः। धाव्यागमरणप्राणिक्षयशब्दे श्रुते तथा ॥ १८९ ॥ नियमितान्नसम्भुक्ते प्राग्दुःखाद्रोदने स्वयम् । विदशकायां क्षुते वान्तौ मूत्रोत्सर्गेऽन्यताडिते ॥ १९० ॥ आर्द्रचर्मास्थिमांसासृक्पूयरक्तसुरामधौ ।. दर्शने स्पर्शने शुष्कास्थिरोमविट्जचर्माण ॥ १९१ ॥ ऋतुमती प्रसूता स्त्री मिथ्यात्वमलिनाम्बरे । मार्जारमूषकवानगोश्वाद्यव्रतिबालके ॥ १९२ ॥ पिपीलिकादिजीवैर्वा वेष्टितानं मृतैश्च वा। इदं मांसमिदं चेदृक् संकल्पे वाऽशनं त्यजेत् ॥ १९३ ॥ भोजन करते समय, मोजनकी भाफसे प्राणीके प्राणोंका घात हो जानेपर, अग्निमें झपटकर पतंग आदिके मर जानेपर, भोजन करनेवालोंके शरीरोंका परस्पर स्पर्श हो जानेपर, कौड़ी, केश, चमड़ा, हड्डी, २५
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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