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सोमसेनभट्टात्तविरचित -
ॐ म्ही क्रौ प्रशस्तपर्णसर्वलक्षणसम्पूर्ण स्वायुधवाहन वधू चिन्हसपरिवाराः पञ्चदशतिथिदेवताः आगच्छत आगच्छत इत्यादि कुण्डस्य प्रथममेखलायां तिथिदेवतार्चनम् ॥ ३४ ॥
“ ॐ हीँ क्रौं ” इत्यादि मंत्रको बोलकर कुंडकी प्रथम मेखलापर पन्द्रह तिथि देवतोंकी पूजा करे ॥ ३४ ॥
ॐ हाँ क्रोँ प्रशस्तवर्णसर्वलक्षणसम्पूर्णस्वायुधवाहनव चिन्हसपरिवारा नवग्रहदेवता आगच्छतागच्छतेत्यादि द्वितीयमेखलायां ग्रहपूजा ।। ३५ ।।
ॐ ह्रीँ मेँ इत्यादि मंत्रका उच्चारण कर दूसरी मेखलापर ग्रहोंकी पूजा करे ॥ ३५ ॥ ॐ ह्रीँ क्रीँ प्रशस्तवर्ण सर्वलक्षणसम्पूर्णस्वायुधवाहन वधूचिन्हसपरिवाराश्चतुर्णिकायेन्द्रदेवता आगच्छतागच्छतेत्यादि । ऊर्ध्वमेखलायां द्वात्रिंशदिन्द्रार्चनम् ॥ ३६ ॥
यह मंत्र पढ़कर तीसरी मेखलापर बत्तीस इंद्रोंकी पूजा करे ॥ ३६ ॥
ॐ वहीँ क्रौं सुवर्णवर्ण सर्वलक्षणसम्पूर्ण स्वायुधवाहनवधू चिन्ह सपरिवार इन्द्रदेव आगच्छागच्छेत्यादि इन्द्रार्चनम् ॥ एवं लघुपीठेषु दशदिक्पालपूजा ॥ ३७ ॥
यह मंत्र पढ़कर इंद्रकी पूजा करे, इसी तरह वेदी पर आठों दिशाओंमें बने हुए आठ लघुपीठोंपर आठ दिक्पालों की पूजा करे ॥ ३७ ॥
ततः ॐ =हीँ ँ स्थालीपाकमुमहरामि स्वाहा ॥ पुष्पाक्षतैरुपहार्य स्थालीपाकग्रहणम् ॥ ३८ ॥
इसके बाद “ ॐ ह्रीँ स्थालीपाकमुपहरामि स्वाहा " यह पढ़कर पुष्प अक्षतोंसे भरकर स्थालीपाकको अपने पास रक्खे ॥ ३८ ॥
ॐ वहीँ होमद्रव्यमादधामि स्वाहा || होमद्रव्याधानम् ॥ ३९ ॥
इसे पढ़कर होम द्रव्यको अपने पास रक्खे ॥ ३९ ॥
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ॐ ह्रीँ आज्यपात्रमुपस्थापयामि स्वाहा । आज्यपात्रस्थापनम् ||४०||