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करै, स्वस्तिकासन बैठे । पद्ममुद्रा जोड़े । उत्तर की ओर मुख करके बैठे पूवाण्हके समय "ॐ ह्रीँ ह्रीँ" इत्यादि मंत्रो बायें हाथसे जपे । इस तरह वश्य कर्म होता है ॥ ७८ ॥
आकर्षण ।
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अथाकृष्टिकर्मणि । रक्तवर्णैर्यन्त्रोद्धारः पूर्वाभिमुखो दण्डासनाङ्कुशमुद्रायुतः ॐ हाँ हीँ हूँ हाँ हः असि आउ सा एनां स्त्रियमा कर्षयाकर्षय संवौषट् ॥ एवं भूतप्रेतवृष्टचादीनामप्याकर्षणम् ॥ ७९ ॥
आकर्षण कर्म यदि किसी स्त्री आदिका करै तो लालवर्णका यंत्र बनावे, पूर्व दिशाकी ओर मुखकर दण्डासन से बैठे, अंकुश मुद्रा जोड़े और “ ॐ ह्राँ " इत्यादि मंत्रका जप करै । इसी तरह भूत-प्रेत- वृष्टि आदिकाभी आकर्षण करै ॥ ७९ ॥
स्तम्भन ।
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हरितालादिपीतवर्णैर्यन्त्रोद्धारः । पूजा सर्वा पीता । पीता जपमाला बज्रासनं शंखमुद्रा ॥ ॐ हाँ हीँ हूँ हीँ हः अ सि आउ सा साधकस्य एतन्नामधेयस्य क्रोधं स्तम्भय स्तम्भय ठः ठः ॥ एवं शार्दूलादीनां क्रोधस्तम्भनम् ॥ ८० ॥
यदि किसीके क्रोधका स्तम्भन करना हो तो इस प्रकार करै कि हल्दी आदि के पीले रंग से यंत्र खेंचै, पूजा-सामग्री पीली बनावै, जापमाला भी पीले रंगकी ले, वज्रासन मांड़े । शंखमुद्रा जोड़े, “ॐ ह्रां ह्रीं”” इत्यादि मंत्र का जाप करै । इसी प्रकार सिंह आदिका क्रोध - स्तभंव न करै ॥ ८० ॥
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अतिवृष्टौ सत्यां कर्माण — ॐ हाँ हीँ हूँ हाँ ह आउ सा अत्र एनां वृष्टिं स्तम्भयः ठः ठः
॥ इति स्तम्भनम् ॥८१॥
अतिवृष्टिके स्तंभन करनेमें “ ॐ ह्रां ह्रीँ ” इत्यादि मंत्रका जप करे इसतरह स्तम्भन कर्म होता है ॥ ८१ ॥
उच्चाटनकर्म ।
अधोच्चाटनकर्मणि कृष्णवर्णैर्यन्त्रोद्धारः । अपराण्हे मरुद्दिमुखः कुर्कुटासनः पल्लवमुद्रा नीलजाप्यैर्जप ॐ हाँ हीँ हूँ हीँ हः असि उसा देवदत्तानमधेयं अत उच्चाटय उच्चाटय फट् फट् । इति जपेत् । एवं भूतादीनामप्युच्चाटनम् ॥ इत्युच्चाटनकर्म ॥ ८२ ॥