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मार्मिकार
पूर्व दिशाके बीचमें चैत्यालय बनवावे । पश्चिम दिशामें अच्छे अच्छे सुन्दर चित्रोंसे खचित चित्रामशाला, दक्षिण दिशामें जल रखनेका स्थान, उत्तर दिशामें खजाना, पूर्वदिशामें घण्टा, तोरण, बन्दनवार आदिसे सुशोभित बाहर भीतर आने-जानेका दरवाजा बनवावे । मकानके मध्यभागमें अच्छे अच्छे गीत, हास्य-विनोदी द्वारा मन बहलानेवाली नर्तकियोंके लिए नाचने-मानेको नृत्यशाला बनवावे और मकानकी बाहरी बगलमें गौशाला ( नौहरा ) बनवावे जिसमें कि हाथी घोड़े, रथ, पयादे आदि सभी रह सकें ॥ २२ ॥ २५ ॥
एकद्वित्रीणि सप्तान्ता उपर्युपरि संस्थिताः ।
चूर्णकाचसुवर्णादिलेपनैर्लेपिताः पराः ॥ २६ ॥ एक, दो, तीन ऐसे सात मंजिलतकके मकान बनवावे । जिनमें चूना, काच, सुवर्ण आदिका लेप करावे ॥ २६॥
नानाशृंगैश्च संयुक्त मालाचन्द्रोपकादिभिः।
पुषोत्पत्तिविवाहादिकल्याणपरिपूजितम् ॥ २७ ॥ मकानके ऊपर कई तरहके शिखर बनवावे तथा माला चँदोवा आदिसे मकानको अच्छी तरह सजावे । और जिसमें पुत्र-जन्मोत्सव, विवाह मंगल आदि अच्छे अच्छे कल्याण करता रहे ॥ २७ ॥
चैत्यस्य वामभागे न होमशालां समापयेत् ।
धूमावकाशकस्थानं सल्लकीकदलीयुतम् ॥ २८ ॥ चैत्यालयकी बाई ओर होमशालाका निर्माण करावे । जिसमें घूआ निकलनेका एक रास्ता रक्खे । तथा सल्लकी केले आदिके पेड़ लगवावे ॥२८॥
पल्यकं कुसुमानि चन्दनरसः कर्पूरकस्तूरिका,
स्वाद बनिता स्वरूपसहिता हास्यादिका सक्रिया । तांबूलं वरभूषणानि तनुजा दानाय सत्संपदो,
गेहे यस्य स एव सन्ति विभवा धन्यश्च पुण्यत्माकः ॥ २९ ॥
वही उत्तम पुरुष धन्य है, वही उत्तम पुण्यशाली है जिसके घरमें बढ़ियासे बढ़िया शय्या, फूल, चन्दर-रस, कपूर, कस्तूरी, नित नये मीठे भोजन, उत्तम रूपवती स्त्री, मनोविनोद करनेको उत्तम हास्यादि क्रियाएँ, ताम्बूल, अच्छे अच्छे आभूषण, विनीत पुत्र और दान देनेको उत्तम सम्पत्ति इत्यादि विभव मौजूद हैं ॥ २९ ॥