SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८2 सोमसेमभट्टारकविरचित इत्थं युक्तिविधामतः सुसकर्ल सन्ध्यादिकोपासनं, ये कुर्वन्ति नरोत्तमा भवभयाद्भीताश्च ते दुर्लभाः। संसाराम्बुधिनौसमा शिवकरां भव्यात्मनां प्राणिनां, तस्मादादरपूर्विका बुधजनाः कुर्वन्तु सन्ध्यां सदा ॥ १४९ ॥ इस प्रकार युक्ति और विधिपूर्वक सम्पूर्ण संध्योपासन क्रियाको जो भव्य पुरुष करते हैं वे सांसारिक भयोंसे निर्भय हो जाते हैं । यह संध्योपासना भव्य प्राणियोंको संसार-समुद्रसे तारनेके लिए जहाजके समान है और क्रमसे मोक्ष स्थानको ले जानेवाली है । इस लिए बुद्धिमान पुरुषोंको आदर पूर्वक दर रोज तीनों समय सन्ध्यावन्दन करना चाहिए ॥ १४९ ॥ श्रीब्रह्मसूरिद्विजवंशरत्नं, श्रीजैनमार्गप्रविबुद्धतत्त्वः । वाचन्तु तस्यैव विलोक्य शास्त्रं, कृतं विशेषान्मुनिसोमसेनैः॥ १५०॥ द्विजवंशमें शिरोमणि और जैनतत्वोंके स्वरूपको अच्छी तरह जाननेवाले श्रीब्रह्मसूरि नामके एक भारी विद्वान पंडित हमसे पहले हो गये। उन्होंने एक त्रैवर्णिकाचार नामका शास्त्र बनाया है । उसीको देखकर मुझ सोमसेन मुनिने भी इस त्रिवर्णाचार शास्त्रकी कुछ विशेष रीतिसे रचना की है। जिसे भव्य पुरुष अच्छी तरह पढ़ें और पढ़ावें ॥ १५० ॥ इति श्रीधर्मरसिकशास्त्रे त्रिवर्णाचारनिरूपके भट्टारकश्रीसोमसेनविरचिते स्नानवस्त्राचमनसन्ध्यातर्पणवर्णनो नाम तृतीयोऽध्यायः ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy