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________________ सोमसेनभट्टारकविरचित अनध्याय के दिनों में एक सौ आठ, इसके सिवा अन्य दिनोंमें इससे आधे - चौवन और पूजाके समय दश जप अपनी शक्तिके अनुसार करे ॥ १२२ ॥ जप करनेका स्थान । गृहे जपफलं प्रोक्तं वने शतगुणं भवेत् । पुण्यारामे तथाऽरण्ये सहस्रगुणितं मतम् ।। १२३ ।। पर्वते दशसाहस्रं नद्यां लक्षमुदाहृतम् । कोटिं देवालये प्राहुरनन्तं जिनसन्निधौ ॥ १२४ ॥ घरमें बैठ कर जप करनेसे जो फल होता है उससे सौ गुणा वनमें बैठ होता है और वही पुण्यरूप बगीचे या जंगलमें बैठकर किया जाय तो सहस्र गुणा, पर दश हजार गुणा, नदीके किनारे पर एक लाख गुणा, देवालय में एक करोड़ प्रतिमाके सामने अनन्त गुणा फलता है ॥ १२३ ॥ १२४ ॥ व्रतच्युतान्त्यजादीनां दर्शने भाषणे श्रुतौ । क्षुतेऽधोवातगमने जृम्भणे जपमुत्सृजेत् ।। १२५ ।। जप करते करते व्रतच्युत पुरुषों और चाण्डाल आदिके देखनेपर, उनकी बोली सुनाई देनेपर अपने को छींक आनेपर, अपान वायुका प्रसारण होने पर और जँभाई आनेपर जप करना बन्द कर दे ॥ १२५ ॥ कर जप करने से पर्वत के शिखर गुणा और जिन प्राप्तावाचम्य चैतेषां प्राणायामं षडंगकम् । कृत्वा सम्यक् जपेच्छेषं यद्वा जिनादिदर्शनम् ।। १२६ ॥ यदि जप करते समय उपर्युक्त बाधाएँ उपस्थित हो जायँ तो आचमन कर षडंग प्राणायाम करे अथवा उठ कर जिन भगवानका दर्शन करे । बाइ बाकी बची हुई जाप पूर्ण करे ॥ १२६ ॥ एवं जपविधिं कृत्वा तत उत्थाय भक्तितः । हस्तौ द्वौ मुकुलीकृत्य पूर्वाभिमुखसंस्थितः ।। १२७ ॥ वन्दनाकर्म सन्ध्याया निवर्त्यालसवर्जितः । उपविशेत्पुनस्तत्र शिष्टामाचरितुं क्रियाम् ॥ १२८ ॥ ऊपर कहे अनुसार जपविधिको करके आसनसे उठकर खड़ा होवे और पूर्व दिशा की ओर मुँह कर, दोनों हाथ जोड़ कर आलस्य रहित हो, भक्तिपूर्वक सन्ध्या-सम्बन्धी वंदना नामकी
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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