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________________ अनेकों उपचार किये गये लेकिन सब व्यर्थ हुए, सर्पके काटे हुए मनुष्यका जल्दी अग्निसंस्कार करना योग्य नहीं, कारण कि आयुष्य दृढ हो तो कदाचित वह पुनर्जीवित हो जावे, इस विचारसे तेरी स्त्रीआदि सब लोगोंने उसे नीमके पत्तोंमें लपेट एक सन्दूकमें बन्द कर गंगाप्रवाहमें बहा दी। जलवृष्टिकी आधिकतासे ज्योंही भयंकर बाढ आई त्योंही वह सन्दुक बहती हुई समुद्रमें पहुंची तथा तेरे हाथ लगी। इसके आगेका वृत्तान्त तुझे ज्ञात ही है। .. अब तेरी माताका वर्णन कहता हूं, स्थिरचित्त होकर सुन-पल्लीपतिकी दुर्भेद्य सेना ज्योंही पास आई तो उसके तेजसे राजा सूरकान्त निस्तेज हो गया । उसने शीघ्रही पहाडकी भांति किल्लेकी रचना की । उसमें सर्व खाद्य पदार्थ पूर्णरूपसे भर दिये तथा किल्लेके अंदर स्थान २ पर योग्य पराक्रमी योद्धाओंको नियत कर दिये । जो राजा शत्रुका सामना नहीं कर सकता है उसकी यही नीति है। इधर पल्लिपतिकी सेनाने चारों ओरसे किल्ले पर धावा कर दिया । मुनिराजके वचन जिस भांति दुष्कर्मोंका शीघ्र ही नाश कर डालते हैं उसी प्रकार पल्लीपतिकी सेनाने बातकी बातमें किल्ला तोड डाला तथा मदोन्मत्त हाथीकी भांति सूरकान्तकी सेनाके योद्धाओंके बाणरूप अंकुशकी कुछ परवाह न करते एकदम श्रीमंदरपुरकी पोलका दरवाजा तोडकर वह सेना- नदीप्रवाहकी भांति
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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