________________
(७९६) श्राद्धाहितार्थ विहिता, श्राद्धविधिप्रकरणस्थसूत्रयुता ॥ वृत्तिरियं चिरसमयं, जयताजयदायिनी कृतिनाम् ॥१६॥
अर्थः-श्राद्धविधि नामक मुलग्रन्थ सहित जिसकी यह वृत्ति मैंने श्रावकोंके हितार्थ रची, सो (वृत्ति ) कुशलपुरुषोंको जय देनेवाली होकर चिरकाल विजयी होवे. ॥१६॥