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________________ (७८०) आप (श्रीरत्नशेखरसूरिजी) की विरचित अर्थदीपिकामें देखो. चौदवां द्वार दीक्षाग्रहण याने अवसर आने पर चारित्र अंगीकार करना. इसका भावार्थ यह है कि-श्रावक बाल्यावस्थामें दीक्षा न ले सके तो अपनेको वंचित हुआ समझे. कहा है कि-जिनने सारेलोकको दुख न दिया कामदेवको जीत कर कुमारअवस्था ही में दीक्षा ली, वे बालमुनिराज धन्य हैं. अपने कर्मवश प्राप्त हुई गृहस्थावस्थाको, एकाग्रचितसे अहर्निशि सर्वविरतिके परिणाम रखकर पानीका बेड़ा सिर पर धारण करनेवाली सामान्यस्त्रीकी भांति पालना. कहा है कि- एकाग्र चित्तवाला योगी अनेक कर्म करे तो भी पानी लानेवाली स्त्रीकी भांति उसके दोषसे लिप्त नहीं होता. जैसे परपुरुषमें आसक्त हुई स्त्री ऊपरसे पतिकी मरजी रखती है, वैसे ही तत्वज्ञानमें तल्लीन हुआ योगी संसारका अनुसरण करता है. जैसे शुद्ध वेश्या मनमें प्रीति न रखते 'आज अथवा कल इसको छोड दूंगी' ऐसा भाव रख कर जारपुरुषका सेवन करती है, अथवा जिसका पति मुसाफिरी करने गया है, ऐसी कुलीन स्त्री प्रेमरंगमें रह पतिके गुणोका स्मरण करती हुई भोजन-पानआदिसे शरीरका निर्वाह करती है, वैसे सुश्रावक भी सर्वविरतिके परिणाम मनमें रखकर अपनेको अधन्य मानता हुआ गृहस्थपण पाले. जिनलोगों ने प्रसरते मोहको रोक कर दीक्षा ली, वे सत्पुरुष धन्य हैं, और यह पृथ्वी
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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