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________________ ( ५७ ) अनुसार राजा जितारि तोता हुआ | भगवान जिनेश्वरने कहा है कि--"तोता मैना आदि तिर्यंचके साथ क्रीडा करनेसे अनर्थ उत्पन्न होता है, " यह सत्य है । धर्मपरायण होते हुए भी राजा जितारिकी इस क्रीडासे ऐसी दुर्गति हुई, इससे जीवकी विचित्रगति और जिनभाषित स्याद्वाद स्पष्ट प्रकट होता है । यद्यपि शत्रुंजयतीर्थ की यात्रा करनेसे मनुष्यके नारकी तथा तिर्यच इन दो दुर्गतियोंको प्राप्त करने वाले अशुभ कर्मका क्षय होता है तथापि क्षय होने के बाद भी जो वह अशुभ कर्म का संचय करे तो अवश्य भोगना पडता है। इससे तीर्थका माहात्म्य लेश मात्र भी कम नहीं होता, कारण कि वैद्यके अच्छे कर देने पर भी यदि कोई अपथ्य करके रोगी हो जावे तो उसमें वैद्यका क्या दोष? जो भी राजा जितारि पूर्वभवके दुर्दैव वश उत्पन्न हुए कुध्यानसे तिथंच योनिमें गया तो भी थोडे ही कालमें उसे कल्याणकारी श्रेष्ठ समतिका फल प्राप्त होगा । तत्पश्चात् राजाका अग्नि संस्कारादिक उत्तर कार्य होजाने पर हंसी तथा सारसी दोनों रानियोंने उसी दिन दीक्षा ली, और अंत में मृत्यु पाकर वे स्वर्ग में देवियां हुई । अवधिज्ञानसे जब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि उनका पति तिर्यंच-योनि में तोता हुआ है तब बड़े खेदसे उन्होंने वहां जाकर उसे प्रतिबोधित किया व उसी तीर्थ पर उससे अनशन कराया । वह तौता मृत्यु पाकर उन्हीं देवियोंका प्रतिरूप देव हुआ । कालक्रमसे
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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