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प्रमाण सुवर्णप्रतिमायुक्त एक महावीरस्वामीका देरासर बनवाया, मूलमंडपमें सवालक्ष सुवर्णमुद्राएं तथा रंगमंडपमें एकवीसलाख सुवर्णमुद्राएं लगी । कुमारपालने तो चौदहसो चुम्मालीस नूतन जिनमंदिर तथा सौलहसो जीर्णोद्धार करवाये, छियानबेकरोड द्रव्य खर्च करके पिताके नामसे बनाये हुऐ त्रिभुवनबिहारमें एकसौपच्चीस अंगुल ऊंची मूलनायकजीकी प्रतिमा अरिष्ट. रत्नमयी बनवाइ थी, भिन्नर बहत्तर देरियोंमें चौदहभार प्रमाणकी चौबीस रत्नमयी, चौबीस सुवर्णमयी और चौबीस रौप्यमयी प्रतिमाएं थीं। वस्तुपालमंत्रीने तेरहसौतेरह नवीन जिनमंदिर और बावीससौ जीर्णोद्धार कराये, तथा सवालाख जिनबिंब भरवाये । पेथडश्रेष्ठीन चोरासी जिनप्रासाद बनवाये, उसमें सुरगिरिपर चैत्य नहीं था वह बनवानेका विचारकर वीरमद राजाके प्रधान विप्र हेमादेके नामसे उसकी प्रसन्नताके लिये उसने मांधातापुरमें तथा औंकारपुर में तीन वर्षतक दानशाला चालु रखी । हेमादे प्रसन्न हुआ और पेथडको सात राजमहलके बराबर भूमि दी। नीव खोदनेपर मीठा जल निकला, तब किमीने राजाके पास जा चुगली खाई कि, " महाराज ! मीठा जल निकला है, इसलिये बावडी बंधाओ।" यह बात मालूम होते ही पेथडश्रेष्ठीने रातोंरात बारहहजार टंकका लवण पानीमें डलवाया । इस चैत्यके बनाने के लिये स्वर्णमुद्राओंसे लदी हुई बत्तीस ऊंटनियां भेजीं। नीवमें चोरासीहजार टंकका व्यय हुआ, चैत्य तैयार हुआ