SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 790
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (७६७) अनुरागी था, तथापि उसके प्रधानवर्गने उसे समझाया कि, " उदायन राज्य लेनेके हेतु यहां आया है" प्रधानोंकी बात सत्य मानकर केशीने उदायनमुनीको विषमिश्रित दही बहोरावाया. प्रभावतीदेवताने विषका अपहरण करके फिरसे दही लेनेको मना किया. दही बंद होजानेसे महाव्याधि पुनः बढ गई. देवताने तीन बार दही सेवन करते विषका अपहरण किया, एक समय देवता प्रमादमें था, तब मुनिके आहारमें विष मिश्रित दही आगया, तत्पश्चात् एकमासका अनशनकर केवलज्ञान होने पर उदायनराजर्षि सिद्ध हुए. पश्चात् प्रभावतीदेवताने क्रोधसे वीतभयपट्टण पर धूलकी वृष्टि करी और उदायनराजाका शय्यातर एक कुंभार था, उसे सिन्नपल्ली में ले जाकर उस पल्लीका नाम 'कुंभारकृत पल्ली' रखा. __ राजपुत्र अभीचि, पिताने योग्यता होते हुए भी राज्य नहीं दिया, जिससे दुःखी हुआ, और अपनी मौसीके पुत्र कोणिक राजाके पास जाकर सुखसे रहने लगा. वहां सम्यकप्रकारसे श्रावकधर्मकी आराधना करता था, तो भी, "पिताने राज्य न देकर मेरा अपमान किया" यह सोच पिताके साथ बांधे हुए बैरकी आलोचना नहीं करी. जिससे पन्द्रह दिनके अनशनसे मृत्युको प्राप्त हो एक पल्योपम आयुष्य वाला श्रेष्ठ भवनपति देवता हुआ. वहांसे च्यवन पाकर महाविदेहक्षेत्र में सिद्ध होगा. प्रभावतीदेवताने धूलवृष्टि करी थी उस समयकी भूमिमें
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy