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________________ (७६४) कुमारको भायलने कहा कि, "ऐसा करो कि, जिससे मेरे नामकी प्रसिद्धि हो." नागेन्द्र ने कहा ऐसाही होगा. चडप्रद्योत राजा तेरे नामका अनुसरण करके विदिशापुरीका नाम 'देवकीयपुर रखेगा. परन्तु तू आधी पूजा करके यहां आया है जिससे भाविष्यकालमें वह प्रतिमा अपना स्वरूप गुप्तही रखेगी और मिथ्यादृष्टि लोग उसकी पूजा करेंगे. “यह आदित्य भायल स्वामी हैं." यह कह कर अन्यदर्शनी लोग उक्तप्रतिमाकी बाहर स्थापना करेंगे. विषाद न करना, दुषमकालके प्रभावसे ऐसा होगा. भायल, नागेन्द्रका यह वचन सुन जैसा गया था वैसाही पीछा आया. इधर वीतभयपट्टणमें प्रातःकाल होतेही प्रतिमाकी माला सूखी हुई, दासी भी नहीं तथा हार्थाके मदका स्राव हुआ देख कर लोगोंने निर्णय किया कि, चंडप्रद्योत राजा यहां आया था. पश्चात् सोलह देश व तीनसौ त्रैसठपुरके स्वामी उदायनराजाने महासेनआदि दश मुकुटधारी राजाओंको साथ ले चढाई की. मार्गमें ग्रीष्मऋतुके कारण जल न मिलनेसे राजाने प्रभावतीके जीव देवताका स्मरण किया. उसने शीघ्रही आकर वहां जलसे परिपूर्ण तीन तालाब प्रकट किये. अनुक्रमसे संग्रामका अवसर आया, तब रथमें बैठकर युद्ध करना ऐसा निश्चित होते हुए भी राजा चंडप्रद्योत अनिलरेग हाथी पर बैठकर आया. जिससे उसके सिर प्रतिज्ञाभंग करनेका दोप पडा. युद्ध में शस्त्र द्वारा हाथ के पैर बिंध जानेसे वह गिर पडा, तब राजा उदायनने
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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