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नहीं है. जो कन्या तथा वरकी परस्पर प्रीति होवे तो अंतिम चारों विवाह भी धर्मानुकूलही माने जाते हैं. पवित्र स्त्रीका लाभ यही विवाहका फल है. पवित्र स्त्री प्राप्त होने पर जो पुरुष उसकी यथायोग्य रक्षा करे तो, संतति भी उत्तम होती है, मनमें नित्य समाधान रहता है, गृहकृत्य सुव्यवस्थासे चलता है, कुलीनता ज्वलित होजाती है, आचार विचार पवित्र रहते हैं, देव, अतिथि तथा बांधवजनका सत्कार होता है, और पापका सम्बन्ध नहीं होता. ___स्त्रीकी रक्षा करनेके उपाय इस प्रकार हैं:--उसे गृहकार्यमें लगानी, उसके हाथमें खर्च के लिये परिमित व उचित रकम देनी, उसे स्वतन्त्रता न देनी, उसे हमेशां मातादिके समान स्त्रियोंके सहवासमें रखना इत्यादि स्त्रीके सम्बन्धमें जो उचिताचरण पूर्व कहे जा चुके हैं, उसमें इस बातका विचार प्रकट किया है. विवाहआदिमें जो खर्च तथा उत्सवआदि करना, वह अपने कुल, धन, लोक इत्यादिककी योग्यता पर ध्यान देकर ही करना; अधिक न करना, कारण कि, अधिकव्ययआदि करना धर्मकृत्यहीमें उचित है. विवाह आदिमें जितना खर्च हुआ हो, उसीके अनुसार स्नात्र, महापूजा, महानैवेद्य, चतुर्विध संघका सत्कारआदि धर्मकृत्य भी आदर पूर्वक करना चाहिये. संसार. की वृद्धि करनेवाला विवाहआदि भी इस प्रकार पुण्य करनेसे सफल होजाता है.