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________________ या और तनेहीमें तुरतिष्ठा किया (७४५) धन लेकर उक्त महल विक्रमराजाको दे दिया. विक्रमराजा उस महलमें गया और “पडू क्या ? पडूं क्या?" यह शब्द सुनतेही उसने कहा "पड़" इतनेहीमें तुरन्त सुवर्णपुरुष पडा. इत्यादि. इसी तरह विधिके अनुसार बनवाये व प्रतिष्ठा किये हुए श्रीमुनिसुव्रतस्वामीकी थूभकी महिमासे कोणिक राजा प्रबलसेनाका धनी था, तथापि उस विशाला नगरीको बारह वर्षमें भी न ले सका. भ्रष्ट हुए कूलवालुकसाधुके कहने परसे जब उसने गिरवा दिया तब उसीसमय उसने नगरी अपने आधीन करली. इसी प्रकार याने घरकी युक्तिके अनुसार दूकान भी उत्तम पडौस देखकर, न अधिकप्रकट, न आधिकगुप्त ऐसे स्थानमें परिमितद्वारवाली पूर्वोक्तविधिके अनुसारही बनाना उचित है. कारण कि, उसीसे धर्म, अर्थ और कामकी सिद्धि होती है. द्वितीय द्वार 'त्रिवर्गसिद्धिका कारण' इस पदका सम्बन्ध दूसरे द्वारमें भी लिया जाता है, इससे ऐसा अर्थ होता है कि, धर्म, अर्थ और काम इन तीनोंकी सिद्धि जिससे होती हो, उन विद्याओंका याने लिखना, पढना, ब्यापार इत्यादि कलाओंका ग्रहण अर्थात अध्ययन उत्तमप्रकारसे करना. कारण कि, जिसको कलाओंका शिक्षण न मिला हो, तथा उनका अभ्यास जिसने न किया हो, उसको अपनी मूर्खतासे तथा हास्यप्रदअवस्थासे पद पद पर तिरस्कार सहना पडता है जैसे कि, कालीदासकवि प्रथम तो
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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