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________________ (७४३) वाले सुतार तथा अन्य मनुष्य ( मजदूर ) उनको ठैरावसे अ. धिक भी देकर प्रसन्न रखना, उनको कभी ठगना नहीं। जितनेमें अपने कुटुम्बादिकका सुखपूर्वक निर्वाह होजाय,और लोकमें भी शोभादि हो, उतना ही विस्तार (लंबाई चौडाई ) घर बंधानेमें करनी चाहिये, संतोष न रखकर अधिकाधिक विस्तार करनेसे व्यर्थ धनका व्यय और आरंभआदि होता है। उपरोक्त कथनानुसार घर भी परिमित द्वारवाला ही चाहिये । कारण कि, बहुतसे द्वार होवें तो दुष्टलोगोंके आनेजानेकी खबर नहीं रहती और उससे स्त्री, धनआदिके नाश होनेकी सम्भावना है. परिमितद्वारोंके भी पाटिये, उलाले, सांकल, कुन्देआदि बहुत मजबूत रखना चाहिये, जिससे घर सुरक्षित रहता है. किवाड भी सहजमें खुल जाय व बन्द होजाय ऐसे चाहिये अन्यथा आधिकाधिक जीव विराधना होवे और जाना आना इत्यादिक कार्य भी जितना शीघ्र होना चाहिये उतना शीघ्र नहीं हो सके. भीतमें रहनेवाली भागल किसी प्रकार भी अच्छी नहीं. कारण कि उससे पंचेन्द्रिय प्रमुख जीवकी भी विराधना होना सम्भव है. किवाड बन्द करते समय जीवजन्तुआदि भलीभांति देखकर बन्द करना चाहिये. इसीप्रकार पानीकी परनाल, खाल (मोरी) इत्यादिकी भी यथाशक्ति यतना रखना चाहिये. घरके द्वार परिमित रखना इत्यादिक विषय शास्त्रमें भी कहा है.
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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