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________________ ( ७३९ ) शल्य निकले तो बालकका नाश होवे, बालकका शल्य निकले तो घरधनी देशाटनको जावे, गाय अथवा बैलका शल्य निकले तो गाय बैलका नाश होवे और मनुष्य के केश, कपाल, भस्मआदि निकले तो मृत्यु होती हैं इत्यादि. पहिला और चौथा प्रहर छोड़कर दूसरे अथवा तीसरे प्रहर में घर पर आनेवाली वृक्ष अथवा ध्वजाआदिकी छाया निरन्तर दुःखदायी हैं. अरिहंतकी पीठ, ब्रह्मा और विष्णुकी बाजू, चंडिका और सूर्य की दृष्टि तथा महादेवका उपरोक्त सर्व ( पीठ, बाजू और दृष्टि ) छोडना, वासुदेवका वाम अंग, ब्रह्माका दाहिना अंग, निर्माल्य, न्हवणजल, ध्वजाकी छाया, विलेपन, शिखरकी छाया और अरिहंतकी दृष्टि ये श्रेष्ठ हैं. इसी प्रकार कहा है कि - अरिहंतकी पीठ, सूर्य और महादेवकी दृष्टि व वासुदेवका बायां भाग छोड देना चाहिये. घरकी दाहिनी ओर अरिहंतकी दृष्टि पडती होवे और महादेवकी पूठ बाईं ओर पडती होवे तो कल्याणकारी है. परन्तु इससे विपरीत होवे तो बहुत दुःख होता है, उसमें भी बीच में मार्ग हो तो कोई दोष नहीं. नगर अथवा ग्राम में ईशानादिको दिशाओं में घर न करना चाहिये. यह उत्तमजातिके मनुष्यको अशुभकारी है; परन्तु चांडालआदि नीचजातिको ऋद्धिकारी हैं. रहनेके स्थानके गुण तथा दोष, शकुन, स्वप्न, शब्दआदि के बलसे जानना चाहिये.
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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