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________________ (७१९) 'सीरिअ उभामनिओ-अ दरिसणं सन्नि साहुमप्पाहे ॥ दंडिअ भोइअ असई. सावग संघो व सकारं ॥१॥ अर्थः- प्रतिमा पूरी हो जाय तब प्रतिमावाहक साधु जहां भिक्षुकोंका संचार होवे ऐसे ग्राममें अपनेको प्रकट करे, और श्रावक अथवा साधुको संदेशा कहलावे. पश्चात् उक्त ग्रामका राजा, अधिकारी अथवा वे न होवें तो श्रावक, श्राविकाओं और वें न हो तो साधुसाध्वियोंका समुदाय उक्त प्रतिमावाहक साधुका सत्कार करे. इस गाथाका यह अभिप्राय है कि, 'प्रतिमा पूरी होनेपर समीपके जिस ग्राममें बहुतसं भिक्षुक विचरते होवें वहां आकर अपनेको प्रकट करे, और इस दशामें जो श्रावक अथवा साधु देखने में आवे उनको संदेशा कहलावे कि, 'मैंने प्रतिमा पूरी करी, और इससे मैं आया हूं.' पश्चात् वहां जो आचार्य हो वह राजाको यह बात विदित करावे कि, 'अमुक महातपस्वीसाधुने अपनी तपस्या यथाविधि पूर्ण की है. इसलिये बहुत सत्कारके साथ उसे गच्छमें प्रवेश करना है. 'पश्चात् राजा अथवा गांवका अधिकारी अथवा ये भीन हो तो श्रावकलोग और वे भी न हो तो साघुसाधीआदि श्रीसंत्र प्रतिमावाहक साधुका यथाशक्ति सत्कार करे. ऊपर चन्दुआ, बांधना, मंगलवाद्य बजाना, सुगंधित वासक्षेप करना इत्यादिक सत्कार कहलाता है. ऐसा सत्कार करने में बहुत गुण है. यथा:
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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