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________________ ( ७१२ ) रेशमीआदि दस्त्रोंके चंदुए, पहिरावणी, अंगलहणे, दीपक के लिये तैल, धोतीयां, चंदन, केशर, भोगकी वस्तु, पुष्प लाने की छबड़ी, पिंगानिका, ( चंगेरी ) कलश, धूपदान. आरती, आभूषण, दीपक, चामर, नालयुक्त कलश, थालियां, कटोरियां, घंटे, झालर, नगाराआदि देना पुजारी राखना. सुतारआदिका सत्कार करना. तीर्थकी सेवा, बिनसते तीर्थका उद्धार तथा तीर्थ रक्षक लोगोंका सत्कार करना. तीर्थको भाग देना. साधर्मिक वात्सल्य, गुरुकी भक्ति तथा संघकी पहिरावणीआदि करना याचकादिकों को उचित दान देना. जिनमंदिरआदि धर्मकृत्य करना. याचकोंको दान देनेसे कीर्ति मात्र होती है, यह समझ कर वह निष्फल है ऐसा न मानना. कारण कि, याचक भी देवके, गुरुके तथा संघके गुण गाते हैं इसलिये उनको दिया. हुआ दान बहुत फलदायी है. चक्रवर्ती आदि लोग जिनेश्वरभगवान् के आगमन की बधाई देनेवाले को भी साढ़े बारह करोड़. स्वर्णमुद्राएं आदि दान देते थे. सिद्धान्त में कहा है कि - साढ़े बारह लाख तथा साढ़े बारह करोड़ स्वर्णमुद्रा के बराबर चक्रवर्तीका प्रीतिदान है. इस प्रकार यात्रा करके लौटते समय संघवी महोत्सवके साथ अपने घर में प्रवेश करे. पश्चात् देवन्हानादि उत्सव करे, और एक वर्ष अथवा अधिक काल तक तीर्थोपवासआदि करे. इत्यादि. : श्री सिद्धसेनदिवाकरका प्रतिबोधित किया हुआ विक्रमा
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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