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________________ ( ५० ) प्रथम शत्रुजयतीर्थका स्मरण करे, पश्चात् आहार त्यागके निमित्त नोकारसी, पोरिसी, पुरिमड्ड, एकाशन, आंबिल, छट्ठ, अट्ठम, दशम ( चार उपवास ), दुवालस ( पांच उपवास ), मासखमण, अर्धमासखमण ( पन्द्रह उपवास ) आदि पञ्चखान करे, वह पच्चखानका परिपूर्ण फल पाता है । शत्रुजयपर्वतके ऊपर पूजा तथा स्नात्र करनेसे मनुष्यको जो पुण्य उपलब्ध होता है, वह पुण्य अन्यती में चाहे कितना ही स्वर्ण, भूमि तथा आभूषणका दान देने परभी नहीं प्राप्त हो सकता । कोई प्राणी शत्रुजयपर्वत पर धूप खेवे तो पन्द्रह उपवासका, कपूरका दीपक करे तो मासखमणका और मुनिराजको योग्य आहार दान करे तो कार्तिकमासमें किये हुए मासखमणका पुण्य प्राप्त करता है। जिस प्रकार तालाब, सरोवर, नदियां आदि जलके सामान्यस्थान तथा समुद्र जलनिधि कहलाता है उसीभांति अन्य तो तीर्थ हैं किन्तु यह शत्रुजय महातीर्थ कहलाता है । जिस पुरुषने शत्रुजयकी यात्रा करके अपने कर्तव्यका पालन नहीं किया उसका मनुष्यभव, जीवन, धन, कुटुम्ब आदि सब व्यर्थ हैं । जिसने शत्रुजय तीर्थको वन्दना नहीं की उसको मनुष्यभव मिलने पर भी न मिलनेके समान है, एवं जीवित होते हुए भी उसे मृतक तुल्य समझना चाहिये, तथा वह बहुत ज्ञानी होने पर भी अज्ञानीके ही सदृश्य है । जब कि दान, शील, तप तथा तीत्र धर्म क्रियाएं करना कठिन हैं तो सहज ही में होने
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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