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________________ ( ७०० ) आदि संबंधको पाने वाले जीव तो किसी २ जगह बिरले ही होते हैं | साधर्मिभाईका मिलाप भी बडा पुण्यकारी है, तो फिर शास्त्रानुसार साधर्मिका आदरसत्कार करे तो बहुत ही पुण्यसंचय होवे इसमें कहना ही क्या है ? कहा है कि एक तरफ सर्व धर्म और दूसरी तरफ साधर्मिक वात्सल्य रखकर बुद्धिरूप तराजूसे तोलें तो दोनों समान उतरेंगे ऐसा कहा है. साधर्मिकका आदर सत्कार इस प्रकार करना चाहिये: अपने पुत्र आदिका जन्मोत्सव और विवाह आदि होवे तो साधर्मिभाइयोंको निमंत्रण करना और उत्तम भोजन, तांबूल, वस्त्र, आभूषण आदि देना. कदाचित् वे किसी समय संकट में आ पडे तो अपना द्रव्य खर्च करके उन्हें आपत्ति से बचाना. पूर्व कर्म के अंतराय के दोष से किसीका धन चला जावे तो उसे पुनः पूर्ववत् अवस्था में लाना जो अपने साधर्मिभाइयों को पैसे टके सुखी न करे, उस पुरुषकी मोटाई किस काम की ? कहा है कि -- जिसने दीनजीवोंका उद्धार न किया, साधर्मिक वात्सल्य नहीं किया, और हृदय में वीतरागका ध्यान न किया, उन्होंने अपना जन्म व्यर्थ गुमाया. अपने साधर्मिभाई जो धर्मसे भ्रष्ट होते हों तो, चाहे किसी भी प्रकारसे उन्हें धर्म में स्थिर करना. जो वे धर्मकृत्य करनेमें प्रमाद करते हों तो उनको स्मरण कराना, और अनाचारादिसे निवारना कहा है कि, ·
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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