SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 719
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६९६) प्रकाश ५, वर्षकृत्य. (मूलगाथा ) पइवरिसं संघचण साहम्मिअभत्तिजत्ततिगं ॥१२॥ जिणगिहि ण्हवणं जिणधण-- वुड्डी महपूअ धम्मजागरिआ॥ सुअपूआ उज्जवणं, तह तित्थपभावणा सोही ॥१३॥ (चतुर्थप्रकाशमें चातुर्मासिककृत्यका वर्णन किया. अब रही हुई अर्धगाथा तथा तेरहवीं. गाथाद्वारा एकादश द्वारसे वर्षकृत्य कहते हैं.) संक्षेपार्थः-सुश्रावकने प्रतिवर्ष १संघकी पूजा, २ साधर्मिकवात्सल्य, ३ अट्ठाइ रथ-तीर्थ ऐसी तीन यात्राएं, ४ जिन-मंदिरमें स्नात्रमहोत्सव, ५ देवद्रव्यकी वृद्धि, ६ महापूजा, ७ रात्रिको धर्मजागरिका ( रात्रिजागरण ), ८ श्रुतज्ञानपूजा, ९ उजमणा, १० शासनकी प्रभावना, और ११ आलोयणा इतने धर्मकृत्य करना. (१२-१३) विस्तारार्थः--श्रावकने प्रतिवर्ष जघन्यसे एक बार भी १ चतुर्विध श्रीसंघकी पूजा, २ साधर्मिकवात्सल्य, ३ तीर्थयात्रा, रथयात्रा और अठाईयात्रा, ये तीन यात्राएं, ४ जिन-मंदिरमें स्नात्रमहोत्सव, ५ माला पहिरना, इन्द्रमालाआदि पहिरना,
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy