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नियमोंका पालन करके स्वर्गको गया. वहांसे च्यवन कर महाविदेह में सिद्ध होवेगा इत्यादि.
लौकिक ग्रंथ में भी यह बात कही है. यथा: - वशिष्टऋषिने पूछा कि - ' हे ब्रह्मदेव ! विष्णु क्षीरसमुद्र में किस प्रकार निद्रा लेते हैं ? और वे निद्रा लें उस समय कौनसी २ चीजोंको त्यागना ? और उन वस्तुओं के त्यागसे क्या क्या फल होता है ?, ब्रह्मदेवने उत्तर दिया- 'हे वशिष्ट ! विष्णु वास्तवमें निद्रा नहीं लेता और जागृत भी नहीं होता, परन्तु वर्षाकाल आनेपर भक्ति से विष्णु को ये सर्व उपचार किये जाते हैं, विष्णु योगनिद्रा में रहे, तब किन २ वस्तुओंका त्याग करना सो सुन- जो मनुष्य चातुर्मास देशाटन न करे, माटी न खोदे तथा बैंगन, चवला, वाल, कुलथी, तूबर, कालिंगडा, मूली और चवलाई इन वस्तुओं का त्याग करे, तथा हे वशिष्ट ! जो पुरुष चातुर्मास में एक अन्न खावे, वह पुरुष चतुर्भुज होकर परमपदको जाता है. जो पुरुष नित्य तथा विशेष कर चातुर्मास में रात्रिभोजन न करे, वह इसलोक में तथा परलोक में सर्व अभीष्ट वस्तु पाता है. जो पुरुष चातुर्मास में मद्यमांसका त्याग करता है, वह प्रत्येकमास में सौवर्ष तक किये हुए अश्वमेध यज्ञका पुण्य प्राप्त करता है.' इत्यादि.
भविष्यपुराण में भी कहा है कि :- "हे राजन् ! जो पुरुष चातुर्मास में तैलमर्दन (अभ्यंग) नहीं करता, वह बहुत से पुत्र तथा घन पाता है, और नीरोगी रहता है. जो पुरुष पुष्पादिक