SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 706
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६८३) प्रकाश ४ चातुर्मासिककृत्य. पइचउमासं समुचिअ नियमगहो पाउसे विसेसेण ॥ संक्षेपार्थः -श्रावकने प्रत्येक चातुर्मासमें तथा विशेषकर वर्षाकालके चातुर्मासमें उचित नियम ग्रहण करना चाहिये. विस्तारार्थ:-जिस श्रावकने परिग्रहपरिमाण व्रत लिया हो, उसने प्रत्येक चातुर्मासमें पूर्व लिये हुए नियममें संक्षेप करना. जिसने पूर्वमें परिग्रहपरिमाण आदि व्रत न लिया हो, उसने भी प्रत्येकचातुर्मासमें योग्य नियम (अभिग्रह ) ग्रहण करना. वर्षाऋतुके चातुर्मासमें तो विशेष करके उचित नियम प्रहण करनाही चाहिये. उसमें जो नियम जिस समय लेनेसे बहुत फल प्राप्त हो, तथा जो नियम न लेनेसे बहुत विराधना अथवा धर्मकी निन्दा आदि उत्पन्न हो, वे ही नियम उस समय उचित कहलाते हैं. जैसे वर्षाकालमें गाडीआदि चलानेकी बाधा लेना तथा बादल, वृष्टिआदि होनेसे, इल्लीआदि पडनेके कारण रायण (खिरनी), आमआदिका त्याग करना उचित नियम है. अथवा देश, पुर, ग्राम, जाति, कुल, वय, अवस्था इत्यादिककी अपेक्षासे उचित नियम जानो. वे नियम दो प्रकारके हैं. एक दुःखसे पाले जा सकें ऐसे तथा दूसरे सुखपूर्वक पाले जा सकें ऐसे, धनवन्त व्यापारी और अविरातिलोगोंसे साचत्त रस तथा
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy