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________________ (६६०) प्रकाश ३-पर्वकृत्य. ( मूलगाथा ) पव्वेसु पोसहाई बंभअणारंभतवविसेसाई ॥ आसोअचित्तअट्ठा-- हिअपमुहेसुं विसेसेणं ॥११॥ ___ संक्षेपार्थः- सुश्रावकने पर्यों में तथा विशेषकर आश्विनमहीनेकी तथा चैत्रमहीनेकी अट्ठाइ--(ओली)में पौषधआदि करना, ब्रह्मचर्य पालना, आरम्भका त्याग करना, और विशेषतपस्याआदि करना. (११) विस्तारार्थः-'पौष' (धर्मको पुष्टि) को 'ध' अर्थात् धारण करे वह पौषध कहलाता है. श्रावकने सिद्धान्तमें कहे हुए अष्टमी, चतुर्दशीआदि पर्वो में पौषधआदि व्रत अवश्य करना. आगममें कहा है कि-जिनमतमें सर्व कालपर्यों में प्रशस्त योग है ही. उसमें भी श्रावकने अष्टमी तथा चतुर्दशीके दिन अवश्यही पौषध करना. ऊपर "पौषधआदि' कहा है, इसलिये आदिशब्दसे शरीर आरोग्य न होनेसे अथवा ऐसेही किसी अन्य योग्य कारण से पौषध न किया जा सके, तो दो बार प्रतिक्रमण, बहुतसी सामायिक, दिशाआदिका आतिशय संक्षेपवाला देशावकाशिकव्रतआदि अवश्य स्वीकारना. उसी प्रकार पोंमें ब्रह्मचर्यका
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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