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________________ (६५३) उदय सहन करना बहुत कठिन है, जिससे कदाचित् कामवासनासे जीव पीडित होवे । कहा है कि- जैसे लाखकी वस्तु अग्निके पास रखते ही पिघल जाती है, वैसे ही धीर और दुर्बल शरीरवाला पुरुष हो तो भी वह स्त्रीके पास होवे तो पिघल जाता है (कामवश होता है )। पुरुष मनमे जो वासना रखकर सो जाता है, उसी वासनामें वह जागृत होनेतक रहता है ऐसा आप्त ( सयाने ) पुरुषोंका वचन है। अतएव मोहका सर्वथा उपशम करके वैराग्यादिभावनासे निद्रा लेना। वैसा करनेसे कुस्वम नहीं आते, बल्कि उत्तमोतम धार्मिक ही स्वप्न आते हैं । दुसरे सोते समय शुभ भावना रखनेसे, सोता हुआ मनुष्य पराधीन होनेसे, बहुत आपदा होनेसे, आयुष्य सोपक्रम होनेसे तथा कर्मकी गति विचित्र होनेसे कदाचित् मृत्युको प्राप्त हो जावे, तो भी शुभ ही गति होवे । कारण कि "अंतमें जैसी मति, वैसी गति" ऐसा शास्त्र वचन है। इस विषयमें कपटी साधुद्वारा मारेहुए पोसाती उदाई राजाका दृष्टांत जानो । अब उपस्थितगाथाके उत्तरार्द्धकी व्याख्या करते हैंपश्चात् पिछली रात्रिको निद्रा उड जावे, तब अनादिकालके भवके अभ्यासका रससे उदय पानेवाले दुर्जय कामरागको जीतनेके निमित्त स्त्रीके शरीरका अशुचिपनआदि मनमें चिन्तवन करना. " अशुचिपन आदि " यहां ' आदि' शब्द कहा है, अतएव जंबूस्वामी, स्थूलभद्रस्वामीआदि बड़े २ ऋषियोंने तथा
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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