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________________ ( ६४९ ) अल्प निद्रा लेना यह महापुरुषका लक्षण है | आगम में कहा है कि अप्पाहारष्पभणिती अप्पनिद्दा य जे नरा | अप्पोउवगरणा देवावि हु तं नर्मसंति ॥ १ ॥ जो पुरुष अल्पाहारी, अल्पवचनी, अल्पनिद्रा लेनेवाला तथा उपधि और उपकरण भी अल्प करनेवाला होता है, उसको देवता भी प्रणाम करते हैं । नीतिशास्त्रादिकमें निद्रा विधि इस प्रकार कही गई है कि- खटमल ( माकण ) आदि जीवोसे भरा हुआ, छोटा, टूटा हुआ, कष्टकारी, मैला, सडेहुए पायेवाला तथा अग्निकाष्ठ ( अरणी ) का बना हुआ पलंग अथवा चारपाई सोनेके काममें न लेना । सोने तथा बैठनेके काम में चार जोड तकका काष्ठ उत्तम है; पर पांच या अधिक जोडका काष्ठमें सोनेवाले मनुष्य उसके कुलका नाश करता है। अपने पूजनीय पुरुषसे ऊंचे स्थान में न सोना तथा पैर भीगे हुए रखकर, उत्तर अथवा पश्चिम दिशाको मस्तक करके, बांसके समान लंबा होकर पैर रखने के स्थान में मस्तक रखकर न सोना; बल्कि हस्तिदंतकी भांति सोना । देवमंदिरमें, वल्मीक ( बामला ) पर वृक्षके नीचे स्मशान में तथा उपदिशा (कोणदिशा ) में मस्तक करके न सोना । कल्याणकी इच्छा करनेवाले पुरुषने सोते समय मलमूत्रकी शंका हो तो उसका निवारण करना, मलमूत्र त्यागनेका
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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