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________________ (६४६) पोषकः " ऐसा वचन है, इसलिये श्रावकने स्त्रीपुत्रादिकको वस्त्रादि दान अवश्य करना चाहिये । अन्यत्र भी कहा है किराष्ट्रका किया हुआ पाप राजाके सिरपर, राजाका किया हुआ पाप पुरोहितके सिरपर, स्त्रीका किया हुआ पाप पतिके सिरपर और शिष्यका किया हुआ पाप गुरूके सिरपर है । स्त्री, पुत्रादिकुटुंबके लोगोंसे गृहकार्यमें लगे रहने तथा प्रमादिआदि होने के कारण गुरूके पास जा धर्म नहीं सुना जाता, इसीलिये उपरोक्त कथनानुसार धर्मोपदेश करनेसे वे धर्ममें प्रवृत्त होते हैं । यहां धर्मश्रेष्ठीके कुटुंबका दृष्टांत लिखते हैं कि धन्यपुरनगरनिवासी धन्यश्रेष्ठी गुरूके उपदेशसे सुश्रावक हुआ। वह प्रतिदिवस अपनी स्त्री तथा चार पुत्रोंको धर्मोपदेश दिया करता था । अनुक्रमसे स्त्री और पुत्रोंको प्रतिबोध हुआ; परंतु चतुर्थ पुत्र नास्तिककी भांति "पुण्यपापका फल कहां है?" ऐसा कहता रहनेसे प्रतिबोधित नहीं हुआ। इससे धन्यवेष्ठिके मनमें बडा दुखः हुआ करता था। एक समय पडौसमें रहने चाली एक वृद्ध सुश्राविकाको अंतिम समयपर उसने निर्यामणा की (धर्म सुनाया) और ठहरावकर रखा कि, " देवता होनेपर तूने मेरे पुत्रको प्रतिबोध करना ।" वह वृद्धस्त्री मृत्युको प्राप्त होकर सौधर्मदेवलोकमें देवी हुई। उसने अपनी दिव्यऋद्धि आदि बताकर धन्यश्रेष्ठीके पुत्रको प्रतिबोधित किया। इस प्रकार गृहस्वामीने अपने स्त्रीपुत्रआदिको प्रतिबोध करना
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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