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________________ नै हणेइ सय साहू, मणसा आहारसन्नसंवुडओ ॥ सोइंदिअसंवरणो, पुढविजिए खंतिसंपन्नो ॥१॥ इत्यादि सामाचारीरथ, क्षमणारथ, नियमरथ, आलोचनारथ, तपोरथ, संसाररथ, धर्मरथ, संयमरथ आदिके पाठ भी इसी प्रकार जानो. विस्तारके कारण यहां नहीं कहे गये हैं. नवकारकी वलकगणनामें तो पांच पद आश्रयी एक पूर्वानुपूर्वी, एक पश्चानुपूर्वी और शेष एकसौ अट्ठारह (११८) अनानुपूर्वियां आती हैं. नवपद आश्रित अनानुपूर्वी तो तीन लाख बासठ हजार आठसौ अठहत्तर होती हैं. अनानुपूर्वि आदि गिननेका विचार तथा उसका स्वरूप पूज्य श्रीजिनकीर्तिमूरिकृत 'सटीकपरमेष्ठिस्तव से जान लेना चाहिये. इस प्रकार नवकारगिननेसे दुष्टशाकिनी, व्यंतर, वैरी, ग्रह, महारोगआदिका शीघ्रही नाश होजाता है. यह इसका इस लोकमें भी प्रत्यक्ष फल है. परलोकाश्रयी फल तो अनन्त कर्म क्षय आदि है. कहा है कि-जो पापकर्मकी निर्जरा मासकी अथवा एक वर्षकी तीनतपस्यासे होती है, वही पापकी निर्जरा नवकारकी अनानुपूर्विगुणनेसे अर्धक्षणमें होजाती है. शीलांगरथआदिकी गणनासे भी मन, वचन, कायाकी एकाग्रता होती है, और उससे त्रिविध २ आहारआदि संज्ञाओंका श्रोत्रआदि इंद्रियोंका संवरण करनेवाले, पृथ्वीकायआदि आरम्भको वर्जनेवाले तथा क्षांतिआदि दशविध धर्मको पालनेवाले ऐसे साधु मनसे भी हिंसा न करें,
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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