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________________ ( ६४० ) --- अर्थ : - इसी प्रकार चौमासी तथा संवत्सरीप्रतिक्रमणकी रिधि जानो, उसमें इतना विशेष कि, पक्खीप्रतिक्रमण होवे तो "पक्खी" चौमासी होवे तो "चौमासी" और संवत्सरी होवे तो "संवत्सरी" ऐसे भिन्न २ नाम आते हैं ।। ३२ ।। तह उस्सग्गज्जोआ, बारस वीसा समंगलं चत्ता || संबुद्धखामणं तिप-सत्तसाहूण जहसंखं ॥ ३३ ॥ अर्थ :-- उसी प्रकार पक्खी के काउस्सग्ग में बारह, चौमासीके काउसमें बीस और संवत्सरीके काउस्सागमें चालीस लोगस्सका क. उस्सरंग नवकार सहित चिंतवन करना तथा संबुद्ध · खामणा पक्खी, और चौमासी और संवत्सरी में क्रमशः तीन, पांच तथा सात साधुओं को अवश्य करना ||३३| हरिभद्रसूरिकृत आवश्यकवृत्ति में वन्दनक नियुक्ति के अन्दर आई हुई " चत्तारि पडिकमणे " इस गाथाकी व्याख्याके अवसर में संबुद्धखामणके विषयमें कहा है कि, देवसीप्रति - क्रमणमें जघन्य तीन, पक्खी तथा चौमासी में पांच और संवत्सरीमें सात साधुओं को अवश्य खमाना. प्रवचनसारोद्धारकी वृत्तिमें आई हुई वृद्धसामाचारी में भी ऐसाही कहा है. प्रतिक्रमण के अनुक्रमका विचार पूज्य श्रीजयचन्द्रसूरिकृत प्रतिक्रमणगर्भहेतु नामक ग्रन्थ मेंसे जान लेना चाहिये. उसी तरह आशातना टालनाआदि विधिसे मुनिराजकी अथवा गुणवान तथा अतिशय धर्मिष्ठ श्रावक आदिकी विश्रामणा
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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