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________________ ( ६२२ ) ( मूलगाथा ) संझाइ जिणं पुणरवि, अइ पडिकमइ कुणइ तह विहिणा ॥ विस्समणं सम्पायं, गिहं गओ तो कहइ धम्मं ॥ संक्षेपार्थः - संध्यासमय पुनः अनुक्रमसे जिनपूजा, प्रतिक्रमण, इसीप्रकार बिधीके अनुसार मुनिराजकी सेवाभक्ति और सज्झाय करे पश्चात् घर जाकर स्वजनों को धर्मोपदेश करे. विस्तारार्थः - श्रावक के लिये नित्य एकाशन करना, यह उत्सर्गमार्ग है. कहा है कि-- श्रावक उत्सर्गमार्ग से सचित्त वस्तुका त्यागी, नित्य एकाशन करनेवाला, ब्रह्मचर्यव्रत पालन करनेवाला होता है, परन्तु जो नित्य एकाशन न कर सके, उसने दिनके आठवें चौघडियेंमें प्रथम दो घडियों में अर्थात् दो घडी दिन बाकी रहने पर भोजन करना, अन्तिम दो घडी दिन रहे भोजन करनेसे रात्रि भोजन के महादोषका प्रसंग आता है. सूर्यास्त के अनंतर रात्रिमें देरसे भोजन करने से महान् दोष लगता है. उसका दृष्टान्त सहित स्वरूप श्रीरत्नशेखरसूरि (प्रस्तुत ग्रन्थकारः) विरचित अर्थदीपिकामें देखो. भोजन करनेके उपरांत पुनः सूर्योदय होवे, तब तक चौविहार अथवा दुविहार दिवसचरिम पच्चखान करना चाहिये.
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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