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________________ (६२०) हो उतने लंघन करना. परंतु वायुसे, थकावटसे, क्रोधसे, शोकसे, कामविकारसे और प्रहार होनेसे उत्पन्न हुए ज्वरमें लंघन न करना चाहिये, तथा देव, गुरुको वन्दनादिकका योग न होवे तीर्थ अथवा गुरुको वन्दना करना होवे, विशेष व्रत पञ्चखान लेना होवे, महान् पुण्यकार्य आरम्भ करना होवे उस दिन व अष्टमी, चतुर्दशीआदि श्रेष्ठपर्वके दिन भी भोजन नहीं करना चाहिये. मासक्षमण आदि तपस्यासे इस लोक परलोकमें बहुत गुण उत्पन्न होते हैं. कहा है कि तपस्यासे अस्थिर कार्य हो वह स्थिर, टेढा हो वह सरल, दुर्लभ हो वह सुलभ तथा असाध्य हो वह सुसाध्य हो जाता है । बासुदेव, चक्रवर्तीआदि लोगोंके समानदेवताओंको अपना सेवक बना लेना आदि इसलोकके कार्य भी अट्ठम आदि तपस्या ही से सिद्ध होते हैं; अन्यथा नहीं सुश्रावक भोजन करनेके उपरांत नवकार स्मरण करके उठे और चैत्यवंदनविधिसे योगानुसार देव तथा गुरुको वन्दना करे. उपस्थितगाथामें "सुपत्तदाणाइजुत्तिए" इस पदमें आदि शब्दका ग्रहण किया है इससे यह सर्व विधि सूचित की अब गाथाके उत्तरार्द्धकी व्याख्या करते हैं-भोजन करनेके बाद दिवसचरिम अथवा ग्रंथिसहित आदि गुरुप्रमुखको दो बार वन्दना करके ग्रहण करना. और गीतार्थ
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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