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________________ --(६१८) पतला, खट्टा और खारा रस भक्षण करना तथा अन्त में कडुवा और तीखारस भक्षण करना चाहिये प्रथम पतले रस, मध्यमें कडवे रस और अंतमें पुनः पतला रस भक्षण करना चाहिये, इससे बल और आरोग्य बढता है. भोजनके प्रारंभमें जल पीनेसे अग्नि मंद होती है, मध्यभागमें जलपान रसायनके समान पुष्टि देता है, और अंतमें पीनेसे विषके समान हानिकारक होता है । मनुष्यने भोजन करनेके बाद सर्वरससे भरे हुए हाथसे जलका एक कुल्ला प्रतिदिन पीना. पशुकी भांति मनमाना जल नहीं पीना चाहिये, झूठा बचा हुआ भी न पीना; तथा खोसे भी न पीना. कारणकि, परिमित जल पीना ही हितकर है. भोजन कर लेने के बाद भीगे हुए हाथसे दोनों गालोंको, बायें हाथको अथवा नेत्रोंको स्पर्श न करना; परंतु कल्याणके लिये दोनों घुटनोंको स्पर्श करना चाहिये. भोजनके उपरांत कुछ समय तक शरीरका मर्दन, मलमूत्रका त्याग, बोझा उठाना, बैठे रहना, नहाना आदि न करना चाहिये. भोजन करके तुरंत बैठ रहनेसे मेदसे पेट बढ जाता है; चिता सोरहनेसे बलवृद्धि होती है; बाई करवट सो रहनेसे आयुष्य बढती है और दौडनेसे मृत्यु सन्मुख आती है. भोजनोपरांत तुरत बाई करवट सो रहना; किन्तु निद्रा नहीं लेना चाहिये, अथवा सौ पद चलना चाहिये. यह भोजनकी लौकिकविधि है, सिद्धांतमें कही हुई विधि इस प्रकार है:
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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