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________________ (६१५) है. अतिशय भोजन करनेसे अजीर्ण, वमन, विरेचन (अतिसार) तथा मृत्यु आदि भी सहजहीमें होजाते हैं. कहा है कि-हे जीभ! तू भक्षण करने व बोलनेका परिमाण रख. कारण कि, अतिशय भक्षण करने तथा अतिशय बोलनेका परिणाम भयंकर होता है. हे जीभ ! जो तू दोषरहित तथा परिमित भोजन करे, और जो दोष रहित तथा परिमित बोले, तो कर्मरूप वीरोंके साथ लडनेवाले जीवसे तुझीको जयपत्रिका मिलेगी; ऐसा निश्चय समझ. हितकारी, परिमित और परिपक्व भोजन करनेवाला, बाई करवटसे सोनेवाला, हमेशा हिरने फिरनेका परिश्रम करनेवाला, विलम्ब न करते मलमूत्रका त्याग करनेवाला और स्त्रियों के सम्बन्धमें अपने मनको वशमें रखनेवाला मनुष्य रोगोंको जीतता है. व्यवहारशास्त्रादिकके अनुसार भोजन करनेकी विधि इस प्रकार है: .. अतिशय प्रभातकालमें, बिलकुल सन्ध्याके समय, अथवा रात्रिमें तथा गमन करते भोजन न करना. भोजन करते समय अबकी निन्दा न करना, बायें पैर पर हाथ भी न रखना तथा एक हाथमें खानेकी वस्तु लेकर दूसरे हाथसे भोजन न करना. खुली जगहमें, धूपमें, अन्धकारमें अथवा वृक्षके नीचे कभी भी भोजन न करना. भोजन करते समय तर्जनी अंगुली खडी न रखना. मुख, वस्त्र, और पग धोये विना, नानावस्थासे, मैले वस्त्र पहिरकर तथा बायां हाथ थालीको लगाये बिना भोजन न
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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