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________________ कारी वचन भी नहीं मानता है ? अरे ! अब तू मेरा वचन शीघ्र मान, अन्यथा धोबी जैसे वस्त्रको पछाडता है, उसी तरह तुझे पत्थरपर बारम्बार पछाड २ कर यमके घर पहुंचा दूंगा इसमें संशय नहीं । देवताका कोप व्यर्थ नहीं जाता और उसमें भी राक्षसका तो कदापि नहीं जाता ।" यह कह वह क्रोधी राक्षस कुमारके पैर पकड उसका सिर नीचे करे हुए पछाडनेके लिये शिलाके पास लेगया। तब साहसीकुमारने कहा- "अर राक्षस ! तू मनमें विकल्प न रखते चाहे सो कर. मुझे बारबार क्या पूछता है ? सत्पुरुषोंका वचन एकही होता है." पश्चात् अपने सत्त्वका उत्कर्ष होनेसे कुमारको हर्ष हुआ. उसका शरीर रोमांचित होगया और तेज तो ऐसा दीखने लगा कि कोई सहन न कर सके. इतनेमें राक्षसने जादूगरकी भांति अपना राक्षसरूप हटाकर शीघ्र दिव्यआभूषणोंसे देदीप्यमान अपना वैमानिकदेवताका स्वरूप प्रकट किया, मेघके जलकी वृष्टिकी भांति उसने कुमार पर पुष्पवृष्टि करी और भाटचारणकी भांति सन्मुख खडे होकर जयध्वनि की, और आश्चर्यसे चकित कुमारको कहने लगा कि, "हे कुमार ! जैसे मनुष्योंमें श्रेष्ठ चक्रवर्ती वैसे तू सत्त्वशाली पुरुषोंमें श्रेष्ठ है. तेरे समान पुरुषरत्न और अप्रतिम शूरवीरके होनेसे पृथ्वी आज वास्तवमें रत्नगर्भा और वीरवती हुई है. जिसका मन मेरुपर्वतके समान निश्चल है, ऐसे तूने गुरुके पास धर्म स्वीकार किया, यह बहुत
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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