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________________ (५९३) उसने देखा कि, कहीं मलयपर्वतके समान चंदनकाष्ठके ढेर पडे हैं, कहीं युगलियेको चाहिये वैसे पात्र देनेवाले भृगांगकल्पवृक्ष की भांति सुवर्णके, चांदीके तथा अन्यपात्रोंके ढेर पडे थे खलियानमें पडे हुए धान्यके ढेरके समान वहां किसी जगह कपूरसालआदि धान्यके ढेर लग रहे थे, कोई स्थानमें अपार सुपारीआदि किराने पडे हुए थे, किसी ओर हलवाइयोंकी दुकानोंकी पंक्तियां थीं, किसी ओर सितांशु चंद्रमाकी भांति श्वेतकपडेवालोंकी दुकाने थीं; किसी और घनसारवाले निधिकी भांति कपूरआदि सुगन्धित वस्तुओंकी दुकानें थीं, कहीं हिमालयपर्वतकी भांति नानाप्रकारकी औषधियोंका संग्रह रखनेवाली गांधीकी दुकानें थीं; अभव्यजीवोंकी धर्मक्रिया जैसे भाव रहित होती है, वैसे कहीं भाव रहित अक्लकी दुकानें थीं; सिद्धांतकी पुस्तकें जैसे सुवर्ण ( श्रेष्ठ हस्ताक्षर )से भरी होती हैं, वैसी कहीं सुवर्णसे भरी हुई सराफोंकी दुकानें थीं, कहीं अनंतमुक्ताव्य ( अनंतसिद्धोंसे शोभित ) मुक्तिपदकी भांति अनंतमुक्ताढ्य ( अपार मोतियोंसे सुशोभित ) मोतियोंकी दुकानें थीं; कही विद्रूम पूर्ण बनोंके सदृश विद्रुम पूर्ण ( प्रवालसे भरी हुई ) प्रवालकी दुकानें थीं; कहीं रोहणपर्वतकी भांति उत्तमोत्तम रत्नयुक्त जवाहरातकी दुकानें थीं; किसी किसी स्थानमें आकाशके समान देवताधिष्ठित कुत्रिकापण दुकानें थीं; सोये हुए अथवा प्रमादी मनुष्यका मन जैसे शून्य
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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