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________________ ( ३८ ) ही आनंद मनाते हैं । ) तब पुनः राजा कमलमाला तथा शुकराज कुमारको लेकर उद्यानमें गया । और उस आम्रवृक्षको देखतेही खिन्न होकर कमलमालासे कहने लगा कि, " हे देवी विषके समान इस आम्रवृक्षको दूर ही से त्यागना चाहिये । क्यों कि इसीके नीचे अपने पुत्रकी यह दुर्दशा हुई है। " यह कह कर ज्योंही आगे बढ़ने लगा त्योंही एकाएक उसी वृक्षके नीचे हर्ष उत्पन्न करनेवाली दुंदुभीकी धनि हुई। राजाके पूछनेपर किसीने कहा कि, “ श्रीदत्त मुनिमहाराजको अभी ही केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है, उसका देवता महोत्सव करते हैं।" केवली भगवानको पुत्रके विषयमें पूछनेकी इच्छासे राजाने उत्सुकतापूर्वक परिवार सहित वहां जाकर मुनिराजको वंदना करके वहां पर्षदामें पुत्र के साथ बैठ गया। केवली मुनिराजने अमृत तुल्य क्लेशको दूर करनेवाला उपदेश दिया। अवसर पाकर राजाने पूछा कि, " हे महाराज ! मेरे इस पुत्रकी वाचा बन्द होगई है इसका क्या कारण है ? केवली महाराजने उत्तर दिया कि, “यह बालक बोलेगा" यह सुन हर्षित हो राजा बोला कि"तो यह बार २ हमारी तरफ देखता ही क्यों रह जाता है ?” केवली महाराजने कुमारको लक्ष करके कहा कि, , 'शुकराज ! तू मुझको यथाविधि वन्दना कर" यह सुनते ही शुकराजकुमारने उच्चस्वरसे वंदना सूत्र ( इच्छामि खमासमणका पाठ) बोल कर केवली महाराज
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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