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________________ (५७४) प्रसादसे जैसे निर्धनपुरुष सुखी होता है, वैसेही हमारे सदृश पराधीन व दुःखी जीव तेरे योगसे चिरकाल सुखी रहें ।" कुमार बोला- हे मधुरभाषिणी हंसिनी ! तू कौन है ? विद्याधरने तुझे किस प्रकार हरण की ? और यह मनुष्य वाणी तू किस प्रकार बोलती है ? सो कह." हंसिनीने उत्तर दिया- "हे कुमार! विशालजिनमंदिरसे सुशोभित वैताट्यपर्वतके शिखरको अलंकारभूत “रथनूपुरचक्रवाल " नामकनगरीका रक्षक और स्त्रियोंमे आसक्त "तरुणीमृगाङ्क" नामक विद्याधर राजा है. एक वक्त उसने आकाशमागसे जाते हुए कनकपुरीमें मनोवेधक अंगचेष्टा करनेवाली "अशोकमंजरी" नामक राजकन्या देखी. समुद्र चन्द्रमाको देखकर जैसे उमडता है वैसेही हिंडोले पर क्रीडा करती हुई साक्षात् देवाङ्गना समान उस कन्याको देखकर वह कामातुर हो गया. पश्चात् उसने तूफानी पवन उत्पन्न करके हिंडोले सहित उस राजकन्याको हरण की. और शबरसेना नामक घोरबनमें रखी, वहां वह हरिणीकी भांति भय पाने लगी व टिटहरीके समान आक्रंद करने लगी. विद्याधरराजाने उसको कहा. "हे सुन्दरि ! तू भयसे क्यों कांपती है ? इधर उधर क्यों देखती है ? और आनंद भी क्यों करती है ? मैं कोई बन्दीगृहमें रखने वाला चोर कि परस्त्रीलंपट नहीं, परन्तु तेरे असीमभाग्यसे तेरे वशीभूत हुआ एक विद्याधरराजा हूं. मैं तेरा
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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