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________________ (५७२) देवताको प्रहार करने लगा. देवताकी अचिन्त्य शक्ति व कुमारके अद्भुतभाग्यसे चन्द्रचूड पर किये हुए शत्रुके सर्व प्रहार कृतघ्न मनुष्य पर किये हुए उपकारकी भांति निष्फल हुए. जैसे इन्द्र वज्रसे पर्वतको प्रहार करता है वैसे क्रोधसे दुर्धर हुए चद्रचूडने विद्याधरराजाके मुख्य स्वरूप पर प्रहार किया, तब कायर मनुष्योंके प्राण निकल जावे ऐसा भयंकर शब्द हुआ. विद्याबलसे अहंकारी हुए, त्रैलोक्यविजयी सत्ताधारी वासुदेव समान विद्याधर राजाकी वज्रके सदृश मजबूत मस्तक उस प्रहारसे विदीर्ण नहीं हुआ. तथापि भय पाकर उसकी बहुरूपिणी महाविद्या कौएके समान शघ्रि भाग गई. वास्तवमें देवताओंकी सहायता आश्चर्यकारी होती है इसमें कुछ शक नहीं. "यह कुमार स्वभाव ही से शत्रुओंको राक्षस समान भयंकर लगता था, और उसमें भी आग्निको सहायक जैसे पवन मिलता है, वैसे इसे अजेय देवता सहायक मिला है." यह विचार कर विद्याधरराजाकी विद्या भाग गई. कहा है कि जो भागे सो जावे. पैदलका स्वामी वह विद्याधरराजा अपनी भागी हुई इष्टविद्याको देखनेके लिये उसके पीछे तत्रिवेगसे दौडता गया. संयोगनिष्ठ (परस्पर संयोगसे बने हुए) दो कार्यों में जैसे एकका नाश होनेसे दूसरेका भी नाश हो जाता है, वैसेही विद्याका लोप होतेही विद्याधरराजाका भी लोप होगया. कहां
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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