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________________ (५७०) दोनोमें से कोई भी न थका. एकही समान दो कुशल जुआरी होवे तो उनमें परस्पर विजयका जैसे संशय रहता है, ऐसीही गति इन दोनोंकी थी. ठीक ही है, एक विद्याके बलसे और दूसरा देवताके बलसे बलिष्ठ हुए, बालि और रावणके समान उन दोनों योद्धाओंमें किसकी विजय होगा, यह शीघ्रही कैसे निश्चय किया जा सकता है ? सुनीतिसे उपार्जित धन जैसे क्रमशः चढती दशामें आता है, वैसे नीति और धर्मका विशेष बल होनेसे रत्नसारकुमारका अनुक्रमसे उत्कर्ष हुआ. उससे हतोत्साह हो विद्याधर राजाने अपना पराजय हुआ समझ संग्राम करनेकी सीधी राह छोड दी, और वह अपनी सर्वशक्तिसे कुमार पर टूट पड़ा. बसि भुजाओंमें धारण किये हुए विविधशस्त्रोंसे कुमारको प्रहार करनेवाला वह विद्याधरराजा सहस्रार्जुनकी भांति असह्य प्रतीत होने लगा. शुद्धचित्त रत्नसारकुमार " अन्यायसे संग्राम करनेवाले किसी भी पुरुषकी जीत कभी नहीं होती" यह सोच बहुत उत्साहित हुआ. विद्याधरराजाके किये हुए सर्वप्रहारोंसे अश्वरत्नकी चालाकीसे अपनी रक्षा करनेवाले कुमारने शीघ्र क्षुरप्रनामक बाण हाथमें लिया. व शस्त्रभेदनकी रीतिमें दक्ष होनेके कारण उसने, जैसे उस्तरेसे बाल काटे जाते हैं वैसे उसके सर्व शस्त्र तोड डाले. साथही एक अर्द्धचन्द्रवाणसे विद्याधरराजाके धनुष्यके भी दो टुकडे कर दिये, और दूसरे अर्द्धचन्द्रबाणसे
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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