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________________ (५६८) नहीं ? जिससे तू अभीतक मेरे सन्मुख खडा है. हे मूर्ख ! सदैव दुःखी जीवको भांति तू शीघ्र मरेगा." जिस समय वह उक्त तिरस्कार वचन बोल रहा था उस समय तोता शंकासे, मयूर कौतुकसे, कमलनयनी तिलकमंजरी त्राससे और हंसिनी संशयसे कुमारके मुख तरफ देख रही थी. इतने में कुमारने किंचित् हंस कर कहा- "अरे! तू वृथा क्यों डराता है ? यह डर किसी बालकके सन्मुख चलेगा, वीरके सन्मुख नहीं. अन्य पक्षी तो ताली बजानेसे ही डर जाते हैं, परंतु नगारा बजने पर भी ढिठाई रखनेवाला मठके अंदर रहनेवाला कपोत बिलकुल नहीं डरता है. इस शरणमें आई हुई हंसिनीको कल्पांत हो जाने पर भी मैं नहीं छोड सकता. इतने पर भी सर्पके मस्तक पर स्थित मणिकी भांति तू इसकी इच्छा करता है, इसलिये तुझे धिक्कार है. इसकी आशा छोडकर तू शीघ्र यहांसे भाग जा, अन्यथा मैं तेरे दशमस्तकोंसे दशदिक्पालोंको बलि दूंगा." इतने ही में रत्नसारकुमारको सहायता करनेके इच्छुक चन्द्रचूडदेवताने मयूरपक्षीका रूप त्याग शीघ्र अपना देवरूप बनाया. और हाथमें भांतिरके आयुध धारण करके कुमारके पास आया. पूर्वभवके किये हुए कर्मोंकी बलिहारी है ! उसने कुमारको कहा- "हे कुमार तू तेरी इच्छाके अनुसार युद्ध कर, मैं तुझे शस्त्र दूंगा व तेरे शत्रुको चूर्ण कर डालूंगा." यह सुन
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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