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________________ ( ३६ ) सुगन्धित पुष्पोंसे सुगन्धमय हो कर लहरा रहा था, मृगध्वज राजा सारे स्त्री पुत्रादिक परिवार सहित वहां गया और पूर्व परिचित आम्रवृक्षके नीचे बैठा तथा पिछली बातोंका स्मरण करके कमलमालासे कहने लगा कि, "जिस वृक्ष पर बैठे हुए तोते द्वारा तेरा नाम सुन कर मैं वेगसे आश्रम तरफ दोडा और वहां तेरा पाणिग्रहण करके कृतार्थ हुआ, वह यही सुन्दर आम्रवृक्ष है." __पिताकी गोदमें बैठा हुआ शुकराज यह बात सुनकर शस्त्रसे काटी हुई कल्पवृक्षकी डालीके समान मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़ा। मातापिताका बढा हुआ हर्ष एकदम नष्ट होगया । आतुर होकर उन्होंने इस प्रकार कोलाहल किया कि सब लोग वहां एकत्रित होगये । सब लोग बहुत ही आकुल व्याकुल होगये, भारी हाहाकार मचगया । सत्य है बड़ा पुरुष सुखी तो सब सुखी और वह दुखी तो सब दुखी। चन्दनका शीतल जल छिडकना, केलपत्रसे हवा करना आदि अनेक शीतल उपचार करनेसे बहुत समयके बाद शुकराजको चैतन्य हुआ। यद्यपि उसकी आंखे कमलपुष्पकी भांति खुल गई, चैतन्यतारूप सूर्यका उदय होगया तथापि मुखकमल प्रफुल्लित नहीं हुआ। विचारपूर्वक वह चारों और देखने लगा, किन्तु छमस्थ तीर्थकरकी भांति मौन धारण करके बैठा रहा।
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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